कुंभ मेले में कुंभ का क्या अर्थ है जानिए

कुम्भ मेला दो शब्दो से बना है , कुम्भ यानि की अमृत का घड़ा और मेला का मतलब आप जानते ही है।

देवताओं और दानवो ने मिलकर समुद्र मंथन से अमृत का निर्माण किया। सभी देवता जानते थे की यदि दानवो ने अमृत का पान कर लिया तो वह अमर हो जायेंगे और समय के अंत तक स्वर्ग पर राज करेंगे। इसलिए , जैसे ही अमृत का निर्माण हुआ , देवताओं ने छल करके अमृत का कुम्भ लेकर भाग निकले। देवताओं के छल से सभी दानव् इतने क्रोधित हुए की उन्होंने देवताओं का पीछा पुरे १२ दिन और १२ रात तक किया।

जब देवता राक्षसो से भाग रहे थे, तब के कुछ बूंदे पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरे। यह चार स्थान है प्रयागराज, हरिद्वार , उज्जैन और नाशिक। अमृत के बूँदें हरिद्वार पर छठे दिन गिरे,प्रयागराज पर ९वे दिन गिरे और नासिक एवं उज्जैन पर १२वे दिन गिरे। इसी लिए , कुम्भ मेला नाशिक और उज्जैन एक ही साल या ६ महीने के अंतराल पर मनाया जाता है जब की हिरद्वार और प्रयागराज में ६ और ३ साल के अंतराल पर मनाया जाता है।

देवताओं के गृह पर एक दिन मनुष्य के १ साल के बराबर होता है। इसलिए, देवताओं का १२ दिन मनुष्य का १२ साल होता है। इसलिए, कुम्भ मेला हर बारह साल में एक बार चार स्थानों पर मनाया जाता है

शरीर की शुद्धि +मानसिक शुद्धि + पूजा में शुद्धि = आत्मा की शुद्धि

इसलिए , सभी हिन्दू कुम्भ मेला या किसी भी त्योहार को नहाये या आत्मा की शुद्धि के बिना नहीं मनाते है। गंगा मैली होने के बावजूद , सभी शश्रद्धालु बिना किसी संकोच के गंगा में डुबकी लगाते है

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