कौन सा पेशा ऐसा है जिसकी कमाई हमारी सोच से भी ज़्यादा है?
आप किसी भी छोटे या बड़े शहर या गांव से आते हों, आपने सप्ताह में बाजार लगाने वाले इन लोगों को ज़रूर देखा होगा. कोई पुराने या कटपीस के कपड़े सस्ते दामों में बेच रहा होता है तो कोई साबुन वगेरा.
इन लोगों को देखकर मुझे हमेशा लगता था की इतने सस्ते दामों में सामान बेचने वाले ये लोग आखिर ज़्यादा से ज़्यादा कितना कमा लेते होंगे. लेकिन जब मैंने इन्ही में से एक के बारे में खुद उसके मुंह से सुना तो मैं हैरान रह गया.
वह लेडीज़ सूटों और साड़ियों पर लगने वाली बेलों को बेचने का काम किया करता था. कोई बेल 5 रुपए मीटर, कोई 15 रुपए तो कोई 50 रुपए मीटर तक पहुंच जाती थी.
जब मैंने उससे पूछा की 10 रुपए मीटर बिकने वाली बेल उसे कितने में पड़ती है तो उसका जवाब चौका देने वाला था.
जी हाँ, 10 रुपए मीटर बिकने वाली बेल उन्हें अमूमन 2 से 5 रुपए मीटर में पड़ जाया करती थी. फिर पूछा गया तो उसने बताया की ये बेल किसी एक अच्छे बाजार में 50-50 मीटर भी बिक जाती है और ऐसी ही ना जाने कितने तरह की बेले उसके पास से लगभग सभी बाज़ारों में बिक जाती है.
जब मैंने उससे उसके एक दिन की कमाई पूछी तो उसने बताया की यहाँ कोई फिक्स कमाई नहीं है. कभी कभी उसे एक दिन में 5 हज़ार तो कभी कभी 2 से 3 हज़ार रुपए भी बैठ जाते हैं, तो कभी कभी 800 रुपए से 1500 रुपए में भी संतुष्ट होना पड़ता है.
उसकी औसत महीने की कमाई पूछने पर वो बताता है की उसे लगभग महीने के 50 हज़ार के आस पास कमाई हो जाती है और वो भी हफ्ते में सिर्फ 4 दिन बाज़ारों में जाकर.
बस इतना सुनकर ही मैं दंग रह गया. एक मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करने वाला भारत में रहकर शायद इतना न कमाता हो जितना सड़क के किनारे दुकाने लगाने वाले ये लोग कमा लेते हैं.