क्या आप जानते है कि रामायण में जो त्रिजटा थी वह किसकी पुत्री थी?

देवी त्रिजटा के महत्व का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि जब माता सीता लंका में थी तो उन्होंने अपनी इच्छा से सिर्फ दो लोगों से बात की थी , पहले हनुमान जी और दूसरी त्रिजटा। वाल्मीकि रामायण में त्रिजटा को एक बूढ़ी राक्षसी बताया गया है, सीता उनको माता कह कर सम्बोधित करती है।

स्वयं श्री राम ने लंका विजय के बाद त्रिजटा को धन और सम्मान दिया था।

कई लोग मानते हैं कि त्रिजटा विभीषण की पुत्री थी हांलाकि ऐसा किसी भी रामायण में लिखा नही है।

रामायण के सभी पात्रों को सामान्य मनुष्य मानकर लंका की राजनीति को समझने की कोशिश करें । लंका में कुछ लोग ज़रूर रहे होंगे जिनको सीता की उपस्थिति से आपत्ति थी। इनमें मंदोदरी, विभीषण प्रमुख थे।

किसी भी पिता को सबसे ज्यादा डर अपनी संतान के सामने बेइज़्ज़ती का होता है, अपनी माँ और पत्नी के सामने कुछ हो जाये तो ठीक है पर बच्चों के सामने ज्यादा बुरा लगता है।हांलाकि रावण इन सब चीजों से ऊपर उठ चुका था। पर जब किसी का पिता उसकी माँ पर अत्याचार करे तो संताने पिता के खिलाफ विद्रोह कर देती है। हम सबके परिवारों में ऐसे पल आये होंगे जब हम माँ के समर्थन में पिता के खिलाफ खड़े हो गए थे।

रावण सीता को कहता है कि मंदोदरी को तुम्हारी अनुचरी बना दूंगा। अपनी माँ के लिए ये बात मेघनाद को अच्छी तो नही ही लगी होगी । वो भी सीता को वापस करना चाहता होगा हांलाकि रावण के सामने कुछ नही कहा होगा।

तो लंका में कई लोग थे जो ये चाहते थे कि सीता का आत्मविश्वास बना रहे और वो रावण के दबाव में आत्मसमर्पण न कर दे। इन लोगों ने मिलकर त्रिजटा को अशोक वाटिका में रखवाया होगा ताकि वो सीता को ढाढस बंधाती रहे। देवी सीता कोई दुर्बल नारी नही थी पर फिर भी मंदोदरी,विभीषण को अपना काम तो करना ही था।

त्रिजटा विभीषण की बेटी तो नही थी पर उन्होंने ही त्रिजटा को एक विशेष उद्देश्य से सीता के आसपास रखा होगा।

उज्जैन में एक बड़ा हनुमान मंदिर है जिसके अहाते में देवी त्रिजटा का भी मंदिर देखा है। हर साल उधर महिलाओं का एक भव्य उत्सव होता है। बनारस में भी एक त्रिजटा मंदिर है।

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