क्या आप बता सकते हैं कि किस नाम का राक्षस शंख में छुप गया था जिस कारण बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजता है?
इस मंदिर की, जो उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट के पास बसी है. ये धाम बहुत ही पुराना है. कहा जाता है कि इसका निर्माण सातवीं या फिर नौवीं सदी किया था, जिसके कुछ तथ्य भी मिले हैं. इस मंदिर को भारत के सबसे ज्यादा व्यस्त तीर्थ जगह कहा जाता है. क्योंकि यहां पर लाखों की संख्या में लोग भगवान बद्रीनारायण की पूजा और उनके दर्शन करने के लिए आते हैं. दरअसल मंदिर में बद्रीनारायण की एक मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से बनाई गई मूर्ति को स्थापित किया गया है.
इस मूर्ति के में भी एक दिलचस्प कहानी है. दरअसल माना जाता है कि इसे भगवान शिव के आवतार माने जाने वाले आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में नारद कुंड से निकालकर मंदिर में स्थापित किया था. और तो और मान्यता ये भी है कि ये मूर्ति खुद ही धरती से प्रकट हुई थी.
बात करते हैं कि आखिर इस मंदिर में शंख क्यों नहीं बजाया जाता. इसके पीछे लोगों की एक पौराणिक मान्यता है. जिसके मुताबिक एक दौर था जब हिमालय के इलाकों में दानवों ने आतंक मचा रखा था. उन्होंने यहां पर रहने वाले ऋषि मुनियों का जीना हराम कर दिया था.
जिसकी वजह से ऋषि-मुनि पूजा पाठ नहीं कर पाते थे. यहां तक कि राक्षस उन्हें अपना आहार बना लेते थे. राक्षसों के इन कर्मों से दुखी होकर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती को संटक में मदद के लिए पुकारा. इसके बाद मां कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हो गईं. उन्होंने अपने त्रिशूल और कटार से सारे राक्षसों का खत्म कर दिया.
इस दौरान माता के प्रकोप से बचने के लिए आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस अपने आपको बचाने के लिए भाग रहे थे. भागते-भागचे आतापी राक्षस मंदाकिनी नदी में जाकर छिप गया. जबकि वातापी राक्षस बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर छुपकर बैठ गया.
इसी के बाद से ही बद्रीनाथ धाम में शंख को बजाने पर पाबंदी लगा दी गई. ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है, जिसे हमेशा निभाया जाता रहा है।
दूसरा कारण ये है कि बद्रीनाथ हमेशा बर्फ से ढका रहता है। शंख की ध्वनि बर्फ से टकराकर बर्फ के गिरने को दर बना रहता है। इसलिए बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाय जाता।