क्या प्रयागराज के कुंभ मेले में ट्रांसजेंडर्स द्वारा लगाया गया कैंप बदलते समाज की एक निशानी है? जानिए
“वो जिन्हें हम तिरस्कार समझते है वो ही तो है जो जीवन की बधाइयां देने सबसे पहले आते है।”
मुझे बचपन से लेकर आज तक पता नहीं क्यों, ट्रांसजेंडर्स (जी) से एक अजीब सा भय लगता है। शायद इसका कारण है वो बचपन का लम्हा जब मुझे एक ट्रांसजेंडर (जी) ने मुझे स्नेह जी वशीभूत होकर प्यार किया और अपनी लिपस्टिक के निशान हटाते हुए कहा- “हमसे डरती है बिटिया।”
प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में जहां करोड़ो जनमानस नदियों की पवित्रता के संगम “गंगा, यमुना और सरवती”के प्रेम की सच्ची और पवित्र जल से खुद को सभी पापों से मुक्ति दिलाते है और प्रेम के वशीभूत हो जाते है, वहीं इस बार ट्रांसजेंडर की ओर से शुरू/स्थापित किया गया अखाड़ा खुद में एक मिसाल है और जो इस मकसद को पूरा करता बतलाता है कि- “ समाज में चाहे स्त्री हो,पुरूष हो अथवा ट्रांसजेंडर्स सभी एक है और उस परमात्मा की ही देन है।”
- बदलते समाज को तस्वीर दिखाते इस कुंभ मेले में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी [1] जी का बहुत बड़ा योगदान है जिन्होंने पूरी कोशिश की है कि आगे भी ये पवित्र सोच बनी रहे।
- 2500 ट्रांसजेंडर्स की डुबकियां समाज को ये बताने में एक जोरदार रूप से बताने में सफ़ल रही थी,शिव-पार्वती का रूप ही है तीसरे हम और जो तुमनें तिरस्कृत किया तो भले ही समाज से बेदखल हो जाएंगे,आखिर मूंह तो उसे ही दिखाएंगे,आत्मा से परमात्मा का मिलन इसे ही कहते है।