क्या स्वर्ग जैसी परिकल्पना वाला कोई ग्रह हमारे सौरमंडल अथवा हमारे ब्रह्मांड में उपस्थित है?

स्वर्ग के बारे में सुना तो सभी ने है | हमने भी यही सुना था स्वर्ग ऊपर कंही होगा | क्योंकि टीवी प्रोग्राम आदि में सबको यही दिखाते थे स्वर्ग आकाश में है | जन्हा अप्सरा रहती है | अब टीवी पर तो भरोसा करना बेकार है | फिर स्वर्ग था कन्हा? स्वर्ग और कंही नही इसी संसार में ही था | और नर्क भी और कंही नही कहा जाता इसी संसार में है |

स्वर्ग किसको कहते है? सतयुग और त्रेता को | और नर्क कहते है कलयुग अंत को | और अभी क्या चला हुआ है? कलयुग का अंत | लेकिन देखने में ये बहुत अच्छा स्वर्ग जैसा दीखता है भला ये नर्क कैसे? दुःख अशांति, जन्हा है उसे ही नर्क कहते है | द्वापर युग में कभी भी इस तरह की हरकते नही हुआ करती होगी | न ही कलयुग के आरम्भ में इतनी हिंसा होगी जितनी आज है | पिछले १०० वर्षो में पुरे विश्व में कितनी जाने गयी हम सब जानते हैं | 

जबकि हम सबको ये मालूम होना चहिये हम इस समय बारूद के ढेर पर खड़े है | और कभी भी ये ढेर विस्फोट हो सकता है और क्या होगा हमारा |

ख़ुशी की बात ये होनी चहिये स्वर्ग जो था वो पुन इसी धरा पर वापस आने वाला है | कैसे आयेगा? कलयुग अंत के बाद ही नई आदि होती है | तो हमें ये तो पता है ४ युग होते है | और कलयुग के बाद फिर सतयुग आता है | इसका मतलब अभी कलयुग अंत चला हुआ है | फिर क्या आयेगा? सतयुग | कलयुग अंत के बाद आता है सतयुग |

तो ड्रामा ये ही है | कहते है न ४ दिन की चांदनी है फिर अन्देरी रात | क्यों कहा जाता है? इस कहावत का अर्थ है चार युग है और फिर है घोर कलयुग | जो अभी चला है | अर्थात ये नाटक ५००० वर्ष का है जो हुबुहू रिपीट होता रहता हैं | इसमें ४ युग है | फिर है संगम युग | एक तरफ है घोर कलयुग एक तरफ है संगम युग | दोनों साथ साथ चलते हैं | पिछले ८५ वर्षो से घोर कलयुग और संगमयुग चला हुआ है |

संगमयुग है तभी ये विज्ञानं के इतने सारे साधन निकले हैं | ये साधन कोई विकास के लिए नहीं बल्कि विनाश के लिए निकले हुए है | अब आप गुस्सा नही होना ये हम नही कह रहे बल्कि स्वयं परमात्मा शिव कहतें है | साइंस के साधन ही विनाश के निमित बनते हैं | इन्ही साधनों से अंत में महाभारत का युद्ध लड़ा जाना है | और सभी आत्माए वापस परमात्मा शिव के साथ वापस परमधाम जाती है जिसे शिव की बरात के नाम से भक्ति में जाना जायेगा |

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