क्रिकेट में पिच का प्रभाव कितना पड़ता है? क्या पिच बनाने का कोई मानक (स्टैंडर्ड) है?

भारत मे अभी दो ही चीजो की चर्चा है, मोदी और क्रिकेट । और भारत में तो क्रिकेट को धर्म माना जाता है । लेकिन क्या आपको पता है, कि क्रिकेट की जो पिच और मैदान होते है उनके भी मानक होते है, जो हर पिच व मैदान के लिए अनिवार्य होते है ।

पिच व मैदान तैयार करने के मानक

मैदान के मध्य (Center) का 100 बाय 10 फीट का स्थान चुना जाता है । और इसके बाद इस चुनी हुई जगह पर 60 बाय 10 फ़ीट की जगह (स्टंप से स्टंप के बीच की दूरी) का उपयोग पिच के लिए किया जाता है ।

उपरोक्त दोनों चित्रो के माध्यम से आप देख सकते है, कि हर एक चीज का मानक तय है ।

यहां तक कि स्टंप में जो लकड़ी के डंडे उपयोग होते है, उनकी ऊँचाई व एक दूसरे से दूरी सब पहले से निर्धारित होती है ।

आप यहां देख सकते है कि स्टंप से पास की लाइन (वाइड गेंद के लिए मानक) के बीच की दूरी भी पहले से तय है जो कि 12 इंच होती है ।

पिच दो तरह से बनाई जाती है – प्राकृतिक व कृत्रिम ।

दुनिया के कुछ हिस्सों में शौकिया क्रिकेट के लिए कृत्रिम पिच का इस्तेमाल किया जाता है। कृत्रिम पिच को कांक्रीट की स्लैब पर जूट की चटाई औऱ नकली घास को बिछाकर तैयार किया जाता है। हलाकिं तकनीकी रुप से कृत्रिम पिच को पूरी तरह गलत माना जाता है और इसका इस्तेमाल अंतराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में बिलकुल नहीं किया जाता है।

क्रिकेट पिच से जुड़े कुछ नियम

दिशा :- क्रिकेट पिच की दिशा हमेशा उत्तर – दक्षिण होती है, क्योंकि इससे बल्लेबाज पूर्व या पश्चिम से आने वाली सूर्य की तीखी रोशनी से बच जाते है ।

सीमा रेखा (Boundary) :-

पुरुषों के लिए :- 65 से 90 यार्डस (59.44 से 82.30 मी.)

महिलाओं के लिए :- 55 से 70 यार्डस (50.29 से 64.01 मी.)

सुरक्षित स्थान (Protected Area) :- स्टंप से स्टंप के बीच के स्थान पूर्णतः सुरक्षित स्थान होता है । यह खेल को निष्पक्ष बनाने के लिए करा जाता है । इस स्थान पर कोई भी खिलाडी दौड़ या चल नही सकता है, यहाँ तक कि बल्लेबाज या गेंदबाज भी नही । अगर कोई खिलाड़ी इस क्षेत्र में जानबूझकर दौड़ता है तो अंपायर पहले उसे चेतावनी देते है । अगर वो खिलाड़ी लगातार इन चेतावनी को नजरअंदाज करके पिच इस तरह खराब करने की कोशिश करता है तो अंपायर उसे मैच से बाहर भी कर सकते है । और बाद में उस खिलाड़ी पर मैच रेफ़री द्वारा अन्य कार्यवाही की जाती है ।

घास की कटाई (पिच मूविंग) :- पूरे मैदान की अपेक्षा पिच की घास छोटी रखी जाती है और इसके लिए पिच की घास की कटाई (पिच मूविंग) प्रतिदिन की जाती है ।

पिच स्वीपिंग: पिच के उपर से धूल को हटाने के लिए पिच स्वीपिंग की जाती है, लेकिन इस दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि स्वीपिंग के कारण पिच को नुकासान न हो। यह प्रतिदिन की जाती है ।

मैदान पर अभ्यास: आपने कई बार देखा होगा कि खिलाड़ी मैच से पहले मैदान पर अभ्यास भी करते है, ताकि उन्हें पिच व मौसम के बारे में सही जानकारी हो सके । इस अभ्यास के लिए अलग पिच बनाई जाती है,जो मैदान के किनारे पर होती है ।

पिच बनाने का तरीका

सबसे पहले मैदान में लगभग 12 से 13 इंच की खुदाई की जाती है।
खुदाई के बाद इसमें ईंट का चूरा डालकर स्लोप बनाया जाता है । मैदान बनाते हुए इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बारिश आने पर मैदान पर पानी ना भरे इसलिए ड्रेनेज लाइन डाली जाती ।
इसके बाद ईंट का चूरा व रेत डाली जाती है जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच तक होती है । इसके बाद मैदान पर मिट्टी डाली जाती है पर यह कभी भी रेत का 1/10 भाग से ज्यादा नही होती ।
इस बात का हमेशा ध्यान रखा जाता है कि मैदान समतल हो, इसलिए रेत व मिट्टी डालते हुए इस बात की हर बार जांच होती है कि मैदान लेवल में है या नही ।
मैदान व पिच को बनाते समय बार बार रोलर का इस्तेमाल मैदान को समतल करने के लिए किया जाता है ।
इस सबके बाद मैदान पर काली मिट्टी डालकर लेयर बनाई जाती है और जब दो इंच की जगह बचती है तो उसपर घास उगाई जाती है। इसकी कटाई रोज होती है ताकि मैदान पर एक निश्चित मात्रा से ज्यादा घास न हो ।

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