गोत्र क्या है, हिन्दू धर्म मे इसका क्या महत्व है?
भारत के महान ऋषियों का विज्ञान था, जिसे आज भी विश्व मानता है।
भारतीय संस्कृति और मान्यता है कि हम सब किसी महर्षि का सन्ताने हैं। हमारे पूर्वज ऋषि पिता तुल्य हैं। सन्सार इन्हीं से उत्पन्न हुआ है। जिन ऋषियों ने सांसारिक तरीके सन्तति को जन्म दिया उनसे आगे वंश चला।
हम किस ऋषि की संतान है यह गोत्र से पता चलता है। भारत में वैवाहिक सम्बन्ध इसलिए गोत्र छोड़कर किये जाते हैं यानी एक ही गोत्र में शादी नहीं करते।
यह उस समय का रक्त परीक्षण था। एक ही ब्लड ग्रुप वालों को आपस में शादी नहीं करना चाहिए अन्यथा सन्तान मंदबुद्धि, अज्ञानी, रोगी होती है।
जिन लोगों को अपने गोत्र का ज्ञान नहीं है वह लिसी भी पूजा पाठ के समय कश्यप गोत्र बतला सकते हैं।
ऐसी मान्यता है गोत्र का ज्ञान न होने पर ऋषि कश्यप को अपना पूर्वज माने।
जानने योग्य जरूरी बातें—
पूजा-अनुष्ठान के दौरान, समय यदि यजमान अपने कुल, गोत्र, नाम नक्षत्र, माता पिता का नाम नहीं लेता वह पूजा व्यर्थ मानी जाती है। उसका कोइ प्रभाव या लाभ नहीं होता। इसलिए मन्दिरों में दर्शन के समय एक दिपक जलाकर अपने गोत्र, नाम बोलकर कहें कि मैं फलां फलां आपके दर्शन के लिए आया हूँ। कृपा दृष्टि बनाये रखें।
दीपक जलाने का महत्व—
मन्दिरों में केवल दिपक जलाने का ही महत्व है। प्रसाद चढ़ाने का नहीं। भोग को साक्षी नहीं माना गया है। अग्निसाक्षी है।
रहस्यमयी ज्ञान—
यह ज्ञान सदैव कर्मकांडी ब्राह्मणों ने छुपकर रखा, ताकि हर कोई स्वार्थी आदमी इसका दुरुपयोग न कर सके।
विस्तार से यह जानकारी भी जाएगी।
गोत्र का मतलब है कीन के वंशज हो और आपके पूर्वज कौन है।सबसे ज्यादा यह ब्राह्मणों में पाया जाता है क्योंकि हर एक ब्राह्मण का अपना एक गोत्र होता है।अगर एक ही गोत्र एक दूसरे का है तो वह उनका एक ही मूल है मतलब वह एक ही एक ही महात्मा के वंशज है। इसका सीधा सीधा अर्थ यही होता है कि वह भाई-भाई माना जाएगा।