जानिए आपकी जींदगी की सबसे लम्बी रात कौनसी थी?

बात उन दिनों की है जब मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग से स्नातक कर एक कम्पनी में बतौर ट्रेनी इंजीनियर ज्वाइन किया था। नई-नई नौकरी थी, काफी उत्साह और ईमानदारी से हर काम करता था। तब कम्पनी का पावर प्लान्ट कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था। साइट छत्तीसगढ़ के सुदूर क्षेत्र में था, (पुरा विवरण यहाँ देना मेरे लिए उचित नहीं)। कम्पनी का नाम भी मैं लिखना नहीं चाहता पर इतना जान लीजिए आज वो कम्पनी भारत मे मैकेनिकल कंस्ट्रक्शन में शीर्ष 3 नामों में से एक है। 2011 में उस कम्पनी के लिए काम करना मेरे और मेरे परिवार वालों के लिए बड़ी गर्व की बात थी। वहाँ हम तीन लोग थे, जो ट्रेनी के तौर पर गए थे। एक साल का प्रोबेशन अब खत्म हो चुका था। कंस्ट्रक्शन साइट पर हमसे ऊपर साइट इन्चार्ज ही होता था जो हर रोज़ साइट पर उपस्थित होता था। जिन्होंने इस फील्ड में काम किया है वो जानते होंगे किसी भी काम से पहले सेफ्टी क्लीयरेंस लेना होता है सेफ्टी ऑफीसर से।

उस दिन एक मीडियम साइज का बायलर इनस्टॉल होना था। हमारे साइट इंचार्ज को कंपनी के ही किसी काम से इंदौर जाना पड़ा और साइट पर हम तीन नौसिखिए और एक चीफ इंजीनियर और दो सीनियर इंजिनियर जो मुख्यालय से बुलाए गए थे, बचे। सुबह 8:30 बजे से बायलर इंस्टालेशन का काम शुरू हो गया। सेफ्टी अफसर ने सेफ्टी क्लीयरेंस 9:15 तक दे दिया। इंजीनियर जो मुख्यालय से आए थे उन्होंने व्हीस्सल दिया और इंस्टालेशन शुरू कर दिया गया। सब कुछ ठीक चल रहा था। अब हम इंटस्टालेशन के अंतिम चरण में थे। चीफ इंजीनियर और एक सीनियर इंजीनियर जो सुबह से लगे थे, थोड़ा रीवाइव होने के लिए साइट से 7 km दूर पर एक बाजार पड़ता था वहाँ चले गए। एक सीनियर इंजीनियर और हम तीन ट्रेनी इंजीनियर ही साइट पर बचे। लगभग 3:20 बजे क्रेन की चैन क्रैक हो गई और बॉयलर सम्भाला नहीं जा सका और नीचे से वो एकतरफा झुक गया। इसमें बॉयलर के निचले हिस्से से सपोर्ट कर रहे मज़दूरों में से दो की मौत उसमें दब जाने से दुर्घटना स्थल पर ही हो गई।

पूरे साइट पर खलबली मच गई। मरने वाले मज़दूर उसी गाँव के थे जिस गाँव में साइट था। देखते ही देखते हज़ारों लोगों की भीड़ लाठी डंडा लिए साइट पर जमा हो गई। लोग इंजीनियरों को खोजने लगे, जैसे हमने ही उन्हें मार दिया हो। भीड़ बहुत उग्र हो चुकी थी। साइट पर हम तीन ट्रेनी इंजीनियर, तीन सेफ्टी डिपार्टमेंट के लोग और एक सीनियर इंजीनियर कुल सात लोग थे। पर उस भीड़ में से हमें कोई पहचानता नहीं था, वहीं काम करने वाला एक सुपरवाइजर जो उसी जिले का था और वहाँ की लोकल भाषा जनता था। उसने हमें जल्दी से एक कंटेनर वाले केबिन में बंद कर बाहर से ताला बंद कर दिया। किसी तरह वो सुपरवाइजर और साइट के ही कुछ लोग मिलकर उग्र भीड़ को समझा बुझाकर शांत किया। शाम के 4:45 में पुलिस पहुँची। शव को हटाते हटाते 7:45 हो गए। बाहर गए दोनों इंजीनियरों को दुर्घटना की सूचना दे दी गई और वापस साइट पर नहीं आने के लिए कह दिया गया। हम अब भी कंटेनर में बंद थे, मई के महीने में उस कंटेनर केबिन में कितनी गर्मी होगी आप महसुस कर सकते हैं। भूखे-प्यासे रात के नौ बजे, तब जा के माहौल में कुछ शांति महसूस हुई हमने अपने मुख्यालय बात की और अपनी हालत के बारे में बताया। उन्होंने चिंता जाहिर तो की पर हमें निकालने का कोई इन्तेजाम उनके तरफ से नहीं किया गया। रात के दस बज चुके थे हमारे साथ जो सेफ्टी ऑफिसर थे उनका ससुराल साईट से 90 किलोमीटर की दुरी पर था। उन्होंने वहां सुचना दी, उन लोगों ने आश्वस्त किया और कहा कि अगले 3-4 घन्टे में वहां आ जाएँगे। जिस सुपरवाइजर ने हमें लॉक किया था वह दो और लोगों के साथ अभी तक साईट पर ही था। जब हमलोग आश्वस्त हो गए कि वो लोग आएँगे तब हमने उसे घर जाने के लिए कहा। उसने एक जगह चाभी छुपा दी और घर चला गया। रात के दो बजे तक वो लोग अपनी गाड़ी से साईट की तरफ पहुँच रहे थे पर रास्ते में ही ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया और पूछताछ करने लगे। वो लोग स्थिति भाँपते हुए गलत रास्ते में आ जाने का बहाना बनाकर वापस चले गए। उन लोगों ने नजदीकी पुलिस स्टेशन में इसकी जानकारी दी। सुबह 4:30 बजे सेफ्टी ऑफिसर के ससुराल वाले लोकल पुलिस के साथ आए, चाभी खोजी गई और हमें बाहर निकाला गया।

जानते हैं उसके बाद क्या हुआ? उस सारे एक्सीडेंट का दोष हम तीनों ट्रेनी और सेफ्टी विभाग वालों पर मढ़कर हमारे ऊपर हमारी कंपनी ने ही इंटरनल इनक्वायरी कमिटी बिठा दी। बहुत मस्सक्कत के बाद हमें इस शर्त पर निर्दोष करार दिया गया कि हम अपनी स्वेच्छा से कम्पनी से त्यागपत्र दे दें, कंपनी हमारे कार्यकाल से सम्बंधित किसी तरह का कोई भी अनुभव सर्टिफिकेट नहीं देगी। 13 महीनों तक इतनी बड़ी कम्पनी के साथ काम करने के बाद फिर से हम एक फ्रेशर कि तरह जब जॉब खोजने निकले तब तक वैश्विक मंदी से मार्किट पूरी तरह से जकड़ा जा चूका था। हमें जॉब नहीं मिल रहे थे और जो मिले भी वो पुरानी तनख्वाह का एक तिहाई सैलरी दे रहे थे। खैर! समय के साथ सब ठीक हो गया। 20 मई 2013 की रात मेरे जीवन कि सबसे लम्बी रात थी …. वो रात मेरे लिए पुनर्जन्म कि रात जैसी थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *