जानिए लोगों का ब्रेनवाश कैसे किया जाता है?

आप लोगों ने कभी ध्यान दिया दिल्ली में कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बना ,दिल्ली में कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी का सांसद नहीं बना, दिल्ली में कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी का विधायक नहीं बना ,सब छोड़िए दिल्ली में नगर निगम के पार्षद तक कम्युनिस्ट पार्टी के नहीं बनते,

तब आखिर क्या तब आखिर क्या कारण है कि दिल्ली में स्थित एक यूनिवर्सिटी जेएनयू वामपंथ का गढ़ बना हुआ है वास्तव में यही सबसे बड़ा ब्रेनवाश का उदाहरण है

इतना तो कोई भी सोच सकता है कि जहां पर कम्युनिस्ट पार्टी का नामोनिशान नहीं है उस स्थान के एक विश्वविद्यालय में यह विचारधारा कैसे पनप रही है जाहिर सी बात है यह स्वाभाविक नहीं बल्कि ब्रेनवाश करके फैलाई जा रही विचारधारा है

अब होता क्या है कि इंटर के बाद छात्रों का मानसिक स्तर एकदम उपजाऊ भूमि के समान हो जाता है उस समय जैसा बीजारोपण आप करेंगे वैसा फल देखने को मिलेगा चाहे तो आप उसमें गुलाब चंपा चमेली के फूल उगा दीजिए या फिर नागफनी की खेती करना शुरू कर दीजिए इंटर के बाद जब ग्रेजुएशन करने जेएनयू में छात्र जानते हैं कि 3 साल में उनका जमकर ब्रेनवाश कर दिया जाता है

एक सामान्य से छात्र को देश में हर तरफ कुछ समय के अंदर तानाशाही दिखने लगता है उसे लगता है कि समाज उसे दबा रहा है कुल मिलाकर उसकी मानसिक स्थिति शादी में नाराज दूल्हे के फूफा जैसा हो जाता है

कुछ छात्र इस स्थिति का कुछ समय तक विरोध भी करते हैं लेकिन जल में रहकर मगर से बैर ज्यादा समय तक चलता नहीं प्रैक्टिकल के नंबर से लेकर आगे सारी प्रकार की स्थितियां पूरा जो एक लॉबी बन चुकी है वह देखती है तो बहुत ज्यादा समय तक प्रतिवाद किया नहीं जा सकता अंत में छात्र थक हार के फिर उसी से समझौता कर लेते हैं

उदाहरण के लिए उनके प्रोफेशन निवेदिता मेनन को ले लीजिए खुलेआम घूम घूमकर कैंपस में बोलती है कि भारत ने कश्मीर पर कब्जा किया है [1]

छात्रों को फ्री स्पीच के नाम पर और खुली सोच के आधार पर उनके अंदर विकृत सोच भरी जाती है लगातार भारत में कश्मीर पर कब्जा कर लिया है भारत को खंडित करने की बाते. लगातार होती है.

कश्मीर के अलावा भारत ने नॉर्थ-ईस्ट कब्जा किया है गोवा का कब्जा किया है दुनिया भर का पता नहीं चलता फिर भारत है क्या आतंकवादियों के समर्थन में मार्च निकालना विवेकानंद की मूर्ति तोड़ देना यह[2] सब उसी विकृत सोच और ब्रेनवाश का नतीजा है

एक तरफ जहां स्वामी विवेकानंद की मूर्तियां तोड़ दी जाती है वही अफजल गुरु के समर्थन में रैलियां निकाली जाती है पोस्टर लेकर

अब क्योंकि छात्रों का पूरी तरह ब्रेनवाश कर दिया जाता है और उन्हें एक यंत्र की तरह प्रयोग किया जाता है इसलिए जब जेएनयू में अटेंडेंस की बात आती है तो बवाल शुरू हो जाता है [3] कि नहीं अटेंडेंस नहीं होना चाहिए छात्रों को केवल विरोध प्रदर्शन बवाल के लिए प्रयोग करना सबसे बड़ा कारण है अटेंडेंस होगा तो इस पर रोक लगेगी जो उनके पूरे मेहनत पर पानी फेरने जैसा है

इसी ब्रेनवाश का कन्हैया कुमार जैसे छात्र निकलते हैं जो इंडियन आर्मी को रेपिस्ट बताते हैं उमर खालिद जैसा व्यक्ति निकलता है जो आतंकवादी बुरहान वानी को क्रांतिकारी बताता है सरजील इमाम जैसा व्यक्ति नॉर्थ ईस्ट असम को भारत से काटने की बात करता है[4]

अंत में यह दोबारा कहूंगा कि ब्रेनवाश का सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी है यह उस स्थान पर है जहां पर कम्युनिस्ट पार्टी का कोई व्यक्ति जीत नहीं पाता लेकिन छात्रों का ब्रेनवाश करके विश्वविद्यालय में वामपंथ को जिंदा रखा गया है.

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