जीवन के अंतसमय में पांडवों की शक्तियां क्षीण कैसे हो गई थी ?
विष्णु पुराण के अनुसार…द्वारका के समुद्र में समाने के बाद श्रीकृष्ण की बची हुई रानियों को अकेले अर्जुन के द्वारा ले जाते देख लुटेरों में लोभ उत्पन्न हुआ और वें जो भी लाठी आदि उनके पास हथियार थे उन्हें लेकर अर्जुन और उसके साथ के लोगों पर टूट पड़े , और अर्जुन को हरा दिया अर्जुन ने हर सम्भव कोशिश की लेकिन ऐसी अप्रत्याशित हार ने अर्जुन को सोचने पर मजबूर कर दिया कि यही सब अस्त्र शस्त्र यही मैं अर्जुन फिर भी मैं इन तुच्छ लोगों से हार गया, लुटेरों के उस समूह ने अर्जुन के साथ जितनी भी स्त्रियां थी उन्हें खींच लिया कुछ स्त्रियाँ इधर उधर भाग गयी।
आगे बढ़ने पर अर्जुन को व्यास मुनि मिले अर्जुन ने उनसे अपनी उस हार का कारण पूछा तब व्यास मुनि ने उन्हें बताया कि एक समय अष्टावक्र जी तपस्या रत होते हुए लम्बे समय तक जल में रहे उन्हें कंठ तक जल में डूबे तपस्या करते देख रम्भा, तिलोत्तमा और अन्य हजारों अप्सरायें जो उधर से गुजर रही थी, ने मुनि को देखकर प्रणाम किया और स्तुति करके उन्हें प्रसन्न किया तब मुनि ने उन्हें उनकी इच्छानुसार वरदान दिया कि उन्हें श्री कृष्ण पतिरूप में प्राप्त होंगे।
परन्तु जैसे ही मुनि जल से बाहर निकले उनके आठ जगह से मुड़े कुरूप शरीर को देखकर वें अप्सरायें हँसने लगी तब मुनि ने उन्हें श्राप दिया कि भले ही तुम श्रीकृष्ण को पति रूप में पा लो लेकिन तुम लुटेरों के हाथों में पड़ जाओगी, अप्सरायें यह सुनकर घबरा गयी और उन्होंने मुनि से क्षमायाचना की , तब मुनि ने उन्हें कहा मेरी वाणी सत्य होगी परन्तु उसके बाद तुम स्वर्ग में चली जाओगी और यही उन स्त्रियों की गति हुई।
ये अर्जुन की हार केवल उन स्त्रियों की रक्षा करने के कारण ही हुई क्योंकि उन्हें श्रापवश यह सब भोगना ही था भले ही उनके साथ कोई भी होता। एक तरह से अर्जुन को अपने ऊपर घमण्ड हो आया, कि मैं ही इस महायुद्ध का विजेता रहा सबसे बलशाली!! वह भूल चुका था कि कर्ता तो कृष्ण जी रहे वह तो कारण मात्र था।