ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब बृहस्पति यानी गुरु कुंडली के केंद्र में स्थित हो, तो इसका क्या फल मिलता है? जानिए
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब ब्रहस्पति यानी गुरु कुंडली के केंद्र में स्तिथ हो तो इसका फल निम्न प्रकार हो सकता है।
केंद्र भाव लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव होते है।
लग्न में गुरु की स्थिति सबसे मजबूत मानी जाती है ,इसके प्रभाव से जातक परिश्रमी, विद्वान, स्वाभिमानी, विनम्र, स्पष्ट वक्ता होता है तथा लग्न में गुरु कुण्डली के काफी दोषों का समन कर देता है।
चतुर्थ भाव में गुरु स्तिथ होने पर जातक स्वस्थ , प्रसन्नचित, शिक्षित, धनी,वाहन सुख से युक्त, मेहनती,ज्योतिष से संबंधित कार्य करने वाला होने की संभावना होती है।
सप्तम भाव में गुरु के स्तिथ होने से जातक पर निम्न प्रभाव होने की संभावना रह सकती है।
व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने वाला, अच्छा वक्ता,विद्वान, विनम्र व्यवहारी, भाग्यवान।
दशम भाव यानी कर्म भाव में गुरु स्तिथ होने से जातक पर निम्न प्रभाव हो सकते है।
सम्मानित व्यक्तित्व, प्रसिद्ध व्यक्तित्व, अच्छे कार्य करने वाले,सच बोलने वाला धनी , उच्च पद प्रतिष्ठा से सम्मानित, परोपकारी।