ठोकरें ही इंसान को सम्भलना सिखाती है
आज का विषय हमें ज़िंदगी में मिले ठोकरों के परिणाम को व्यक्त करता है।शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो यह कह सके कि उसे अपने जीवन में ठोकर नहीं खानी पड़ी है क्योंकि हर व्यक्ति तभी सम्भलना है जब वह गिरता है।इंसान की यह फ़ितरत होती है की वह उन बातों पर प्रायः ध्यान नहीं देता है जो बातें प्रत्यक्ष रूप से उसे प्रभावित न करती हो,जैसे अगर कोई व्यक्ति बीमार ना हो तो उसे अपने स्वास्थ्य की कीमत का अंदाज़ा नहीं हो सकता है क्योंकि जो भी कुदरत ने हमे अनमोल और मुफ़्त सुविधा उपलब्ध करवाया है वह अतुलनीय है।
जीवन के हर क्षेत्र में यह बात समान रूप से लागू होती है की जो भी उपलब्धि हमे प्राप्त होती है उसके पीछे एक इतिहास जुड़ा होता है और अगर सब कुछ आसानी से हासिल होने लगे तो शायद हम ही खुद को पहचान नहीं पायेंगे।जीवन को अनुभवी बनाने में ठोकरों का बड़ा योगदान होता है,क्योंकि हम गिर -गिर के सम्भलना सीखते है।
कभी भी किसी व्यक्ति को कोई बात या घटना दिल से नहीं लगाना चाहिए क्योंकि यही वह रास्ता है जो हमे सच्चाई से अवगत कराता है।ठोकर खा कर ही मनुष्य सम्भलना सीखता है,संघर्ष और सफलता दोनों पारखी व्यक्ति को ही नसीब होते है इसलिए मनुष्य को अपने बुद्धि और विवेक के बल पर हर मुश्किल समय में खुद पर विश्वास रखना चाहिए।हर एक चुनौती अवसर के साथ आती है और हर एक ठोकर व्यक्ति को चलना सिखाती है।
हर आँधी तूफ़ान एक नई सुबह ले कर आती हैं,क्योंकि जीवन का नाम ही सुख और दुख का संगम है।हर सफल व्यक्ति ठोकरों को झेलते हुए मजबूत बन कर खुद को साबित कर सके हैं,जो आत्मबल के कारण हर विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकल आते है वह कभी भी मुश्किलों से घबड़ाते नहीं है।