डिलिवरी में ब्लीडिंग हो सकती है जानलेवा!

डिलिवरी में ब्लीडिंग गंभीर समस्या है। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही ब्लीडिंग होने लगती है। मेडिकल टर्म में डिलिवरी में ब्लीडिंग को प्लासेंटा एक्रीटा भी कहा जाता है। प्लासेंटा एक्रीटा में प्लासेंटा के कई प्रकार होते हैं।

गर्भावस्था के समय में जब मां शिशु को जन्म देती है उस दौरान शिशु के साथ प्लासेंटा बाहर आ जाता है। यह सामान्य व प्राकृतिक प्रक्रिया है यदि ऐसा ना हो तो यह महिला के साथ डाक्टरों के लिए भी परेशानी उत्पन्न हो जाती है।

प्लासेंटा शिशु के विकास में काफी अहम होता है। महिलाओं के यूट्रस के इनर वाल में यह होता है जो शिशु के जन्म लेने के साथ ही निकल जाता है, इस दौरान ब्लीडिंग होती है, लेकिन वह कुछ समय के बाद रूक जाती है। यदि यह ना निकले तो इसके कारण डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग होती है और वह रुकती नहीं है। अमूमन दवा या इंजेक्शन देकर बच्चे के जन्म के बाद ब्लीडिंग को रोक देते हैं। यदि खून नहीं रुकता है तो दूसरे विकल्पों को तलाशते हैं।

डिलिवरी में ब्लीडिंग के कारण स्थिति और ज्यादा ना बिगड़े ऐसा सोचकर या फिर एनएक्रीटा व परएक्रीटा की कंडिशन में महिला के हालात यदि ज्यादा बिगड़ जाए और जान का खतरा महसूस हो तो इस स्थिति में मरीज की बच्चेदानी को निकाल दिया जाता है। ऐसा तभी किया जाता है जब तमाम कोशिशों के बावजूद डिलिवरी के बाद ब्लीडिंग नहीं रुकती है। यदि बच्चेदानी को निकाल दिया जाए तो फिर वह महिला कभी मां नहीं बन सकती है।

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