तीनों लोक रावण के अधीन थे तो उस काल में राजा दशरथ और राजा जनक स्वतंत्र कैसे माने गए ? जानिए
तीनों लोक ही रावण के अधीन तो नहीं कहे जा सकते हैं लेकिन 95% पर रावण का राज था ओर है अर्थात अधीन थे ओर है । क्या इन्द्र कुबेर यक्ष दक्ष वरुण आदि। लेकिन जो राम है वह किसी के भी अधीन नहीं है बल्कि सब राम के अधीन होते हैं।
लेकिन राम व रावण को एक साथ समझना होगा आखिर ये होते कौन है। जब ये एक साथ रहते है तो ही एक दुसरे के अधीन हो सकते हैं। इसलिये समझने के लिए कहते हैं जहां राम नहीं वहां राक्षस रहते हैं ओर जहां राक्षस है वहां राम नहीं। अर्थात जहां ज्ञान को छोड़कर असुरी भाव आ जाते हैं तो राम गुप्त हो जाता है। ओर जहां राम के भाव अर्थात सत्य ज्ञान आ जाता है तो राक्षस गुप्त हो जाते हैं। पर रहते साथ साथ है अर्थात शक्ति राम से ही मिलती है सबको समान रुप से जीवन रुप में। इसलिये ये दृश्य अदृष्य होते रहते हैं।
राजा दशरथ अर्थात जनक एक ही बात है वो स्वतंत्र इसलिये है क्योंकि वो इन दोनों का भेद जानते हैं ओर अपने पास जगह देखने ते है दोनों को। क्योंकि दशरथ वही है जो दसों इन्द्रियों पर सवार हो अर्थात विजयी है। यहां शरीर की बात हो रही है अब। राम को प्राप्त करने के लिए दसों इन्द्रियां वश में करनी होती है अर्थात दस शिश काटने होते हैं मारनी पडती है ये।
ओर रावण को प्राप्त करने के लिए दस इन्द्रियों का विस्तार करना पडता है अर्थात इनकी इच्छा पुर्ण। दशरथ वही है जो इन रावण रुपी इन्द्रियों से काम ले सके अर्थात राम व रावण को एक साथ साध सके। क्योंकि बिना इन्द्रियों के कुछ भी जाना समझा नहीं जा सकता।
अर्थात किसी शरीर में राम व रावण साथ साथ रहते हैं। तीनों लोकों में कोई ऐसी जगह नहीं है जहां ये नहीं होगें ।शब्द रुप रस गन्ध स्पर्श ये रावण है। क्योंकि जीव यही चाहता है अर्थात रावण को जिन्दा रखता है। इन्हीं से काम क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या जन्म लेती है। जब तक ये विकार रहेगें रावण का राज रहेगा। चाहे कोई भी लोक परलोक हो।
राम इन विकारों से परे है इसलिए गुप्त बना हुआ है। है तो वह हर शरीर के पास परन्तु सत्य ज्ञान से प्रकट करना पड़ता है। जैसे दुध के पास मख्खन होता है दुध में नहीं। कितना ही पोस्टमार्टम कर लो शरीर का राम नहीं मिलेगा। इसलिये एक साथ अर्थात राक्षसों व देवताओं ने समुन्दर मथंन किया था अर्थात साधन वही है ये शरीर दोनों को प्राप्त करने के लिए। जो अमृत को पहचानकर ग्रहण कर लेगा वही अजर अमर अर्थात राम को प्राप्त होगा बाकी रावण को जो हर बार बार अपना देह का शिश कटवाऐगा अर्थात देह धारण करता रहेगा। यानी बन्धन में रहेगा सदा।
इसलिये कहता हूं कि जितनी भी क्रियाए आप करते हो इन इन्द्रियों से करते हो परन्तु सत्य ज्ञान ना होने के कारण आप विष को अमृत समझकर पि रहे हो ओर रावण को प्राप्त हो रहे हो। अर्थात आप शब्द रस रुप गंध स्पर्श में उलझकर व अनुभव करके रावण को प्राप्त हो रहे हैं। अर्थात जीव इन्हीं में रमा हुआ है। जबकी राम तक भी यही पहुचाते है सत्य ज्ञान का अमृत पान करके। राक्षस व देवता इन्हीं दशरथ अर्थात शरीर से व इन्द्रियों से एक समान साथ साथ शरीर मथंन कर रहे हैं। पर अमृत को कोई विरला ही पहचान पा रहे हैं। बाकी जो अच्छा लगे सेवन पान कर रहे हैं।
इसलिए राम व रावण का पता नहीं चल रहा है। केवल अपने ऐसा मान रहे हैं कि मै सही हुं। जबकि ऐसा मानने वाले दोनों गलत है। जबतक सत्य शब्द भेदी सतगुरु ये ना समझा दे ये अमृत है ये विष है। तब आप रावण से बच सकते हैं। अन्यथा कभी नहीं। रामायण के जितने भी पात्र हैं उनके द्वारा सत्य का बहुत सरल व सहजता से वर्णन किया गया है। परन्तु मनुष्य सत्य समझ ही नहीं पाया। हमारे पुर्वज ओर कितना आसान सत्य लिखेगे। इसलिए हर पवित्र ग्रंथ महान दार्शनिक होता है।