दवाओं के रंग अलग अलग क्यों होते है, जानिए
दरअसल कहा जाता है की सबसे पहले दवाओं का विकास मिश्र में हुआ था ! प्रारंभ में ये दवाई उजली हुआ करती थी ! उस वक्त दवाओं को रंगीन नहीं बनाया जाता था ! लेकिन 1970 के आसपास के समय से दवाओं को रंगीन बनाया जाने लगा ! लगभग उसी समय सॉफ्ट्जेल तकनीक का विकास हुआ था ! आखिर इन दवाओं को रंगीन बनाने के पीछे क्या उद्देस रहा होगा ? तो चलिए आज हम आपको बताते है
- कोई भी व्यक्ति रोग ग्रस्त हो सकता है, एक गरीब या अमीर, एक अशिक्षित या शिक्षित, एक जवान या वृद्ध किसी भी व्यक्ति को दवाओं का सेवन करना पड़ सकता है ! इस सम्भन्ध में अनेक प्रकार के शोध हुए है और ये देखा गया हे की एक से अधिक दवाओं के सेवन करने के समय व्यक्ति को दवाओं को पहचान ने में समस्या होती है ! ऐसे में एक ही दवा के ज्यादा सेवन से गंभीर साइड इफ़ेक्ट हो सकते है, या सही दवा के बिना बिमारी का ठीक होना संभव नहीं है ! इसे अच्छी तरह पहचाना जा सके इशलिये दवाओं के रंग अलग अलग होते है !
- रोगी के साथ साथ ड्रग निर्माताओं को भी दवाइओ को पहचान ने में समस्या हो सकती है ! इश्के कितने बुरे परिणाम हो सकते हे इस कल्पना को आसानी से समजा सकता है !
- कुछ कैप्सूल में दो अलग अलग रंग मौजूद होते है, कैप्सूल को गौर से देखने से पता चलता है की उसका एक भाग दुशरे भाग से चौड़ा होता है और लम्बाई में भी अंतर होता है ! क्योकि एक भाग में दवाई भरी होती है दूसरा उश्के कैप की तरह इस्तेमाल किया जाता है! शरीर में जाने के बाद ये गलते हे और उन में डाली हुई दवाई असर करना प्रारंभ करती है !
- कुछ रोगी जो दवाओं का नियमित सेवन करते है वो चमकीली दवाओं को प्राथमिकता देते है ! ये रोगी की आतंरिक भावना और सोच से जुड़ा होता है ! ऐसा कहा जाता है की दवाओं के काम करने के लिए ये भी आवश्यक हे की रोगी आश्वान हो, सकारात्मक हो ! इस स्तिति में दवाइया बिमारी को जल्दी ठीक करती हे !
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