निराशा संभव को भी असंभव बना देती है।

प्रिय सज्जनों आज का विषय निराशा के नकारात्मक प्रभाव को व्यक्त करता है।जब कोई व्यक्ति निराश होता है तो वह हमेशा अपने आप को असहाय महसूस करता है क्योंकि वह अपनी जिंदगी में उपलब्ध विकल्पो पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है। इसलिए कहा जाता है की जीवन में कभी भी किसी व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि कोई भी परिस्थिति हमेशा नहीं बनी रहती,बदलते समय के साथ परिवर्तन होता रहता है,निराशा और आशा मात्र हमारी सोच पर निर्भर है,जीवन की किताब में निराशा शब्द को काटकर कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।आशा और उम्मीद ही वह ताकत है जो किसी भी व्यक्ति को मार्ग दर्शन कर सकती हैं।

एक बार विपरीत परिस्थितियों के कारण एक व्यक्ति ने अपने जीवन को समाप्त करने की ठान लिया तभी उसकी नज़र भिखारी पर जा कर रुक गई जो दोनों हाथ और पैर से लाचार था फिर भी उसके अंदर जीवन जीने की प्रबलता दिखाई दे रही थी,यह देख कर उस व्यक्ति का ह्र्दय परिवर्तन हो गया और उस व्यक्ति ने महसूस किया की हमारी समस्या तो केवल कुछ समय तक के लिए है जिसका समाधान हो सकता है परंतु यदि भगवान ने उसे भी असहाय बना दिया होता तो वह क्या कर पाता?

जब भी कोई मुश्किल आए तो अपने आस पास नज़र दौड़ा कर देखें की कही कोई आपसे भी ज्यादा मुश्किल में भी अपने आप को कुशलता के साथ किस प्रकार से बाहर निकाल कर प्रसन्नचित है।निराशा वह दलदल है जो सभी संभावनाओं को समाप्त करने का प्रयास करती है इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में कभी भी निराश नहीं होना चाहिए और अपनी क्षमताओं पर हमेशा भरोसा करना चाहिए।क्योंकि हर समय एक दिन बदलता जरूर है और ग़म के बाद खुशियों का आगमन जरूर होता है।मानव के जीवन में निराशा शब्द का कोई स्थान नहीं होना चाहिए

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