पराक्रम की कमी न होते हुए भी भारत गुलाम क्यों हुआ? जानिए

हम भारतीय है हमें अपने पूर्वजों में कमी नहि दिखती है उनके पराक्रम में हमें विश्वास है. अतः हम उन सबको महावीर मानते है. इसी तरह जो आक्रांता थे जहां से आये थे उनके वंशज जो आज भारत में है जिन्होंने हमारे पूर्वजों को हराकर उनसे राज्य छीन लिए और उनको दास बना लिया या अपना कामगार नियुक्त कर लिया, वे उनको पराक्रमी मानते है. आज उनमे से बहुत से पाकिस्तान मे चले गए है भारत विभाजन के समय तथा कुछ भारत में भी रह गए है और जितने भी नवाब आदि है इनमे से अधिकतर वाहि लोग है जिनके पूर्वज आक्रांता थे या कुछ लोग इनमे से अपना धर्म भी बदल लिए थे.

ये कहावत सत्य है कि जो जिता वाहि सिकंदर. पांडव महाभारत जीते तो वेद व्यास ने महाभारत में पांडवों के शौर्य का वर्णन किया और आज कोई भी कौरव वंशी क्षत्रिय भारत में है ही नहि जो भी है चंद्रवंशी सभी पांडव वंशीय ही है. किसी ने दुर्योधन का वंशज सुना हो. कृष्ण और कंस दोनो यदुवंशी थे लेकिन आज सभी यादव कृष्णवंशी ही कहलवाते है कोई भी कंस का वंशज नहि बचा. क्या कारण है. सिकंदर से हार कर पोराव वंशी ही बचे है कोई भी अम्भिक के वंश का नहि बचा.

पृथ्वीराज का वंश समाप्त हो गया रणथम्भोर में राजा हमीरपुर के अलाउद्दीन खिलजी से 1301 में युद्ध हारने पर. जोतने भी गद्दार हिये है जितने भी महाराज हिये है उनमे आज भी जोधपुर के राठौर महावीर थे और आज भी है वे अपने आपको जयचंद का वंशज न कहकर राव जोधा का वंशज कहते है. कारण स्पष्ट है कि अपने स्वार्थ के अनुसार स्वयं को महिमामंडित करते है करवाते है. अगर राजा हो तो भाट चारण भी आपके साथ आपकी अस्तुति उपासना पूजा करेंगे और आपका गुणगान करेंगे.

आजकल कि राजनीती में तो नेहरू खानदान गाँधी वंश में कैसे बदल गया यह प्रश्न पिछले सात आठ साल में ही बहित जोर शोर से उठा है अन्यथा फेतेज़ गाँधी थे या मुसलमसन थे या पारसी थे किसी को मतलब न था. अब यह प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है. नेहरू में कितनी कमियाँ थी कितने बडे छोरिबाज थे कितने बडे ब्लून्दर किये, उनके रहते कीदी ने नहि बोला, उनकी बेटी के समय कोई नहि बोला लेकिन आज सत्तर साल बाद बीजेपी के सत्ता में आने पर नेहरू बिरोधी जैसे पुरा देश है.

अतः सब स्वार्थ अनुसार होता है. राजनीती स्वार्थ पर ही आधारित है. राजा बनने के लिए कितने झूठ कियने छल फटेब करने होते है तब ही राज चलाया जाता है. अगर ये लोग लहरब होते तो जो आम आदमी है जिसने आज बीजेपी को चुना उसके ही चुनने से नेहरू और इंफीरा प्रधानमंत्री बने थे. गलत होते तो उनको लोग क्यों चुनते. आज बीजेपी कांग्रेस कि काम कि तारीफ कैसे कर सकती है अगर ऐसा किया तो उसकी सत्ता चली जाएगी.

अतः जैसी परस्तिथि थी उसमे जो जैसा कर पाया उसकों वैसा ही फल मिला. हमारे पूर्वज भारत में हिंदू राजे महाराजे क्षत्रिय अगर बहादुर पराक्रमी होते तो अकरन्टासों को हरते और स्वयं जीतकर उनको गुलाम बनाते और मारपीटकर भगा देते. ऐसा हुआ भी. मौर्य राजाओं ने गुप्त राजाओं ने अनेक विदेशी आक्रांताओं को रोका, हराया उनकी लड़कियों से विवाह किया और उनको दास बनाया. इसी तरह अलाउडदिन खिलजी ने मंगोलो को फिलिंग में हराकर उनका कत्ल करवस्य और उनके सिरों को काटकर दिल्ली में मीनार बनवायी.

ज़ब हिंदू राजा कम पराक्रमी हिये विदेशी आक्रांता मज़बूत हुए उन्होंने राजपूत और अन्य हिंदू राजाओं कि लड़कियों से विकाः किये अपने दरबार में हिंदू दरबारी रखे. अतः जो पराक्रमी था उसका डंका बजा और जो हारा उसका बेंड बजा. कुछ लोग चारण भाट आदतन अपने आप को अपने पूर्वजों को इतिहास कुछ भी हो केसा भी हो स्वसयं को अच्छा लगने के लिए पराक्रमी कहते है. हमेशा अपना राज बचाबे हेतु तिगडम से काम करते रहे और आज भी इसी तरह अपना प्रभाव बचाये हुए है.

कोई भी अपने पूर्वजों को गद्दार और निकम्मा नहि कहलवाना चाहता. भगत सिंह को फांसी दिलवसने में गवाही देने वाले लोगों के वंशज भी माननीय सम्माननीय है और sir कि उपाधि से सम्मानित है. परन्तु सत्य बदलता नहि है जनता जानती है. पराक्रमी होने वाले राजा टिगडमी नहि होते और भारत में मुसलमान अंग्रेज राज नहि करते. क्योंकि इनका पराक्रम कम हो गया अय्यासी में जिंदगी कटने लगी और इनको हारना पढ़ा. पराक्रम व्यक्तिगत गुण है न कि वंश परम्परा से चलने वाला. अतः ज़ब भारत में पराक्रम नस्ट ही गया तब ही विदेशी लोग हम पर हवि हुए. आज भी ऐसा ही है. किसी राजा का उदय और किसी के सुर्य का अस्त होना उस कि कुशलता कौशल और दक्षता अर्थात पराक्रम पर निर्भर है.

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