बाबर ने हिंदुस्तान पर कैसे कब्ज़ा किया ? जानिए

बाबर स्वयं खानाबदोष था. वह सब कुछ राजपाट धन सम्पत्ति हार कर अपना देश छोड़कर जान बचाकर उज्बेकिस्तान से भाग लिया था और इस भागमभाग में उसके हाथ जाबुल लग गया और वह वहां ठहर गया. उसके उज्बेकिस्तान लौटने के सब रास्ते बंद हो गए थे. उसकी फ़ौज भी कम हो गयी थी लेकिन उसने उस समय कि आधुनिक गोला बारूद कि तकनीक सिख लि थी. इन सब युद्धों का यही अनुभव इसके काम आया और धीरे धीरे भारत कि राजनैतिक परस्तिथि ऐसी ख़राब हुयी कि एक बंदर को दो तीन बिलियों को लड़ाने का अवसर मिल गया. हम भारतीय हिंदू मुसलमान आपस में लड़ रहे थे. हिंदू हिंदू और मुसलमान मुसलमान भी आपस में लड़ते रहते थे.

उस समय दिल्ली का बादशाह अफ़ग़ानिस्तान मूल का इब्राहिम लोदी था. उससे उसके सरदार नाराज़ थे. उनमे सबसे अधिक उसका चसच्चा दौलत खान लोदी भी था जो पंजाब का सूबेदार था. मेवाड़ के राणा सांगा भी इब्राहिम से एलडी चुके थे और उनसे लोदी हार भी चूका था लेकिन कैसे भी किसी कारणवस राणा दिल्ली नहि जीत पाए लेकिन मलाल मन में था और दिल्ली जीत कि चाह में पगलपन सवार था. यही दोनो व्यक्ति इब्राहिम को निबटाना चष्टे थे और दोनो ने लगभग एक ही समय में बाबर को न्योता भेजा इब्राहिम को लुटने का. मुख्यतया यह भारत पर आक्रमण का निमंत्रण था. बेबीर के हाथ अच्छा मौका लगा और उसे अपने आपको चमकाने का अच्छा अवसर.

उसने हिंदुस्तानी राजा बादशाहों कि आपसी फुट का लाभ उठाया और पंजाब को लिटता हुआ दिल्ली पर आ धमका 1526 में मार्च में. इब्राहिम भी अपनी फौज ले पानीपत पहुंचा और बड़ी भारी फौज थी लगभग एक लाख, हाथी घोड़े पैदल सब मिलाकर जबकि बाबर के पास मात्र ग्यारह हज़ार घुडसवार ही थे तोप अलग थी जो भारत में पहली बार इस्तेमाल हुयी पानीपत कि पहली लड़ाई में 1526 में. यः तोप ही यिध कि जीत में मुख्य भूमिका अदा कर गयी और बाबर जीत गया. इब्राहिम मारा गया उसके साथ ही गवलियर के राजा विक्रमादित्य भी शहीद हुए और बाबर दिल्ली ग्वालियर आगरा का बादशाह बन गया. इसमें हुमायुँ भी इसके साथ था. इसने गवलिएर कब्जा किया और रानी से महैरानी से कोहिनूर हिरा भी ले लिया.

बाबर को दिल्ली आगरा ग्वालियर टो मिल गए लेकिन असल खतरा राणाशंगा वाकई था जिसने बाबर को भरोसा दिया था कि दिल्ली पर वह भी बाबर के साथ आक्रमण करेगा लेकिनु उस्ने ईसा क़िया नहि. यही बाबर कि चिंता थी और दोनो एक दूसरे को प्रतिद्विंदी मानने लगे. सांगा ने सोचा था कि बाबर और इब्राहिम में जो भी जीतेगा उसे हराना असनहोगे क्योंकि यिध में दोनो का बहुत नुकसान होजायेगा. फिर उससे निबटा लेंगे. साथ ही राणा जी सोचते थे कि बबुर्बाहरी है लूट पात कर भाग जायेगा और दिल्लीको राजपूत कब्ज़ा कर लेंगे बिना अधिक प्रतिरोध के. लेकिन बाबर दिल्ली में जम गया जाता जहां उसके पास था क्या जो जाता.

दिल्ली मिल गयी जमकर बैठ गया और राणा जी का गणित योजना असफल हो गयी. दोनो फिर 1527 में खानवा के युद्ध में मिले जिसमे राणा जी बढ़ी तैयारी के साथ आये और 80 छात्रप्ति राजा एक लाख सेना हाथी घोड़े सहित पहुँचे. राणा जी हमेशा यिध जीतते ही थे. इनके साथ अफघानिभी थे. हुसैन मेवाती भी बाबर के खिलाफ इनके साथ था. लेकिन राजपूत ही राजपूतों को धोखा दे गए और सलहदी राजपूतों ने राणा जी का खैल बिगाड़ फिया. जीते हुए युद्ध को अपने भाईयों कि वेबकूफी से राणा जी हार गए और 88 घाव खा कर बेहोश हो गए. इस युद्ध में राणा कि तैयारी देख वेबर निराश था और खुदा से दुआ मांगकर लड़ा था कि शराब छोड़ देगा और जिहाद करेगा.

इसके बाद बाबर ने दो तीन युद्ध और लड़े तथा अफगानी मुसलमानो के खतरे को समाप्त किया. उसने बिहार तक का क्षेत्र जीत लिया. अफगानी शेरखान जो बाद में शेरशाह बना भी इसकी सेना में इसका सहयोगी बन गया.

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