बैजू बावरा तानसेन से बदला क्यों लेना चाहते थे?

बैजू बावरा एक ऐसा गायक जो गुमनामी में खो गया।बैजू बावरा जो बदले की आग में सुलगता हुआ संगीत को ऐसी ऊँचाई में ले गया कि दुनिया देखती रह गयी।

ये बात है उन दिनों की जब अकबर के दरबार मे नवरत्नों में से एक तानसेन के संगीत की गूंज हर जगह गूंजा करती थी।अकबर के दरबार में सिर्फ वो ही व्यक्ति गा सकता था जो तानसेन से बेहतर हो।

इसी तरह के दरबार मे बैजू के पिता ने गाने के लिए अनुमति मांगी पर तानसेन के संतरी ने बैजू के पिता का अपमान कर दरबार से बाहर निकलवा फेंका।इस अपमान से बैजू के पिता इतने आहत हो गए कि उनकी मृत्यु हो गई,पर मरते समय उन्होंने अपने पुत्र बैजू से कसम ली कि वो इस अपमान का बदला एक दिन तानसेन से अवश्य लेगा।और इस तरह शुरू हुई बैजू के बदले की कहानी।

पिता के मरने के बाद बैजू ने गांव के पुजारी के यहां शरण ले ली और स्वयं से ही संगीत का अभ्यास करने लगा।पर इस बीच उसे गांव के नाविक की बेटी गौरी से प्रेम हो गया।इस प्रेम में वो ऐसा खोया की अपने पिता के अपमान का बदला लेने की कसम भी भूल गया।

कुछ समय बाद जब गांव में डाकुओ का हमला हुआ तो बैजू ने डाकुओ के आगे विनती करके गांव की रक्षा करने की कोशिश की,पर डाकुओ की मुखिया जो एक लड़की थी उसे बैजू से पहली नज़र में ही प्रेम हो गया और उसने शर्त रखी कि गांव को तब ही छोड़ा जाएगा जब बैजू उनके साथ चले।बैजू उसकी बात मान गया और उसके साथ चला गया।बाद में डाकुओ की सरदार ने बताया कि वो यहां के पुराने राजा की बेटी है और यहां बदला लेने आयी है।बदला शब्द सुनते ही बैजू को अपने पिता के अपमान का बदला लेने की कसम याद आयी और वो तानसेन की तलाश में आगे निकल गया।

बैजू तलवार लेकर तानसेन के महल चला गया जहाँ तानसेन संगीत साधना कर रहे थे,तानसेन के संगीत से बैजू होश खो बैठा और उसकी तलवार नीचे गिर गयी।तब तानसेन से उससे कहा कि वो केवल संगीत से ही मारा जा सकता है।

यह सुनकर बैजू वास्तविक संगीत की तलाश में गुरु हरिदास के पास पहुच गया जो तानसेन के गुरु भी थे। बैजू ने उनसे संगीत की शिक्षा देने की अपील की तो गुरु हरिदास मान गए।

गुरु हरिदास ने बैजू को बताया कि बिना दर्द के संगीत कुछ भी नही है।बिना पीड़ा के संगीत कुछ भी नही है।गुरु की छाया में बैजू संगीत सीखने लगा।

और वहां गांव मे गौरी बैजू की याद में जहर खाने की तैयारी में होती है तभी राजकुमारी जो अब डाकुओ की सरदार है उसे बैजू का पता देती है।तब गौरी बैजू के पास जाती है और उससे साथ चलने को कहती है,पर बैजू उसे कहता है कि बिना पिता का बदला लिए वो कहि नही जाएगा।

उसी समय गुरु हरिदास आते है और बैजू गुरु के पास चले जाता है।हरिदास जी बैजू को फिर से समझाते है कि बिना पीड़ा के संगीत नही सीखा जा सकता है,ये बात गौरी सुन लेती है और बैजू की संगीत साधना के लिए खुद को सांप से कटवा लेती है,और म्रत्यु को प्राप्त कर लेती है।गौरी के गम में बैजू सुध बुध खो देता है और गाते हुए अकबर के दरबार की तरफ जाता है।सुध बुध खोये इस बैजू को देख लोग उसे बावरा कहते है।दरबार मे पहुच कर बैजू तानसेन को चुनौती देता है।बैजू और तानसेन दोनों ही प्रतिस्पर्धा करते है पर कोई भी हार नही मानता है।तब अकबर कहता है कि जो भी संगमरमर को अपनी गायकी से पिघलायेगा वही विजेता होगा।

तानसेन इस प्रयास में असफल हो जाते है पर बैजू अपने संगीत की वेदना से संगमरमर को पिघला देता है।इससे तानसेन हार मान लेता है,और बैजू का बदला पूरा हो जाता है।

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