ब्रह्मलोक कहाँ पर स्थित है? जानिए
लोकों की कड़ी में सबसे ऊपर सतलोक या ब्रह्मलोक स्थित है। यहां सृष्टि के रचयिता पितामह ब्रह्मा जी अपने असंख्य सहयोगियों के साथ विराजमान हैं। जब ब्रह्मा वेत्ता अपने शुद्ध चित्त से वहां पहुंचता है तब ब्रह्मा जी और वेत्ता आपस में संवाद करते हैं वह इस प्रकार है-
महर्षि चित्र ने गौतम ऋषि को ब्रह्मलोक की स्थिति बताते हैं-
महर्षि चित्र ने कहा-‘हे गौतम! देवयान मार्ग से जाने वाला साधक क्रमश: अग्निलोक, वायुलोक, सूर्यलोक, वरुणलोक, इन्द्रलोक व प्रजापतिलोक आदि छह लोकों में से होता हुआ ‘ब्रह्मलोक’ में प्रवेश कर पाता है। ‘ब्रह्मलोक’ के प्रवेश द्वार पर ‘अर’ नाम का एक बड़ा जलाशय है। यह जलाशय काम, क्रोध, मोह आदि शत्रुओं द्वारा निर्तित है। यहां पल-भर का भी अहंकार और काम, क्रोध, लोभ आदि का बन्धन, साधक के सभी पुण्यों को नष्ट कर डालता है। ‘इष्ट’ की प्राप्ति में यह जलाशय सबसे बड़ी बाधा है, परन्तु जो इसे पार कर लेता है, वह फिर से पावन विरजा नदी के किनारे पहुंच जाता है।
उसका समस्त श्रम और वृद्धावस्था, विरजा नदी के दर्शन मात्र से ही दूर हो जाते हैं। उसमें आगे ‘इल्य’ नामक वृक्ष (पृथिवी का एक नाम इला भी है) आता है। यहीं पर अनेक देवताओं के सुन्दर उपवनों, उद्यानों, बावली, कूप, सरोवर, नदी और जलाशय आदि से युक्त नगर है, जो विरजा नदी और अर्धचन्द्राकार परकोटे से घिरा है। ये सभी मन को बार-बार मोहने के लिए सामने आते हैं, किन्तु जो साधक इनमें लिप्त न होकर आगे बढ़ जाता है, उसे सामने ही ब्रह्मा जी का एक विशाल देवालय दिखाई पड़ता है।
इस देवालय का नाम ‘अपराजिता’ है। सूर्य की प्रखर रश्मियों से युक्त होने के कारण इसे विजित करना अत्यन्त कठिन है। इसकी रक्षा मेघ, यज्ञ से उपलक्षित वायु तथा आकाश-स्वरूप इन्द्र एवं प्रजापति द्वारा की जाती है, परन्तु जो उन्हें पराजित कर लेता है, वह ब्रह्मलोक में प्रवेश कर जाता है।
वहां एक विशाल वैभव-सम्पन्न सभा-मण्डप के मध्य ‘विचक्षणा’ (अध्यात्मिक) नामक वेदी (चबूतरा) पर सर्वशक्तिमान प्राणस्वरूप ब्रह्मा जी एक अति सुन्दर सिंहासन (पंलग) पर विराजमान दिखाई पड़ते हैं। विश्व जननी अम्बा और अम्बवयवी नामक अप्सराएं उनकी सेवा में रत हैं, जो ब्रह्मवेत्ता साधक का स्वागत करती हैं और उसे अलंकृत करके ब्रह्मा जी के सम्मुख उपस्थित करती हैं।’