भगवान राम हमेशा अपने तरकश में केवल एक ही तीर क्यों रखते थे?
राम को ना मैंने देखा ना आपने पर आएं कुछ समझने की कोशिश करते है।
रामचन्द्र का धनुष
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि भगवान राम के धनुष का नाम कोदंड था इसीलिए प्रभु श्रीराम को कोदंड कहा जाता था। कोदंड का अर्थ होता है बांस से निर्मित। कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता था। कोदंड नाम से भिलाई में एक राम मंदिर भी है जिसे ‘कोदंड रामालयम मंदिर’ कहा जाता है।
कोदंड एक ऐसा धनुष था जिसका छोड़ा गया बाण लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था।
अब जानते है। दीव्य तरकश के बारे में।
वाल्मिकी रामायण 2/32/29-31 में इस संदर्भ में विस्तार से बताया गया है। इसके अनुसार राजा जनक ने जब यज्ञ किया तो उससे प्रसन्न होकर वरुण देव ने उन्हें दो दिव्य धनुष, दो दिव्य खडग़, दो दिव्य एवं अभेद्य कवच और अक्षय बाणों से युक्त दो दिव्य तरकश प्रदान किए थे। ये सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र राजा जनक ने अपनी कन्या सीता के विवाह में श्रीराम को भेंट कर दिए थे।
अब कुछ और
वाल्मिकी रामायण के अनुसार श्रीराम को अन्य अनेक ऋषि-मुनियों, गुरुओं, देवताओं ने भी अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे। महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम को सबसे ज्यादा अस्त्र-शस्त्र दिए। जब भगवान राम वनवास के लिए निकले तो राजा जनक से प्राप्त सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र भी अपने साथ ले गए थे। वनवास के दौरान ही श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम में पहुंचे थे जहां मुनि ने उन्हें कई दिव्यास्त्र दिए।
उन्हीं में से एक शस्त्र था ब्रह्माजी प्रदत्त बाण जिससे श्रीराम ने रावण का वध किया।
अब अंतिम वाक्या फिर से पढ़े।
यहां एक वाण का वर्णन है और यही एक वाण महतवपूर्ण है।
इसके बाद कभी राम को युद्ध नहीं करना पड़ा।
तो यह एक कारण हो सकता है आप के प्रश्न का।
बाकी तीर तो कई थे।
और राम ही जाने राम की माया
जय श्री राम