भगवान शंकर के गले में जो सांप लिपटा रहता है उसका क्या नाम है?

महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दक्ष पुत्री क्रुदु से 1000 नागों ने जन्म लिया जिनमें अनंत (शेषनाग) ज्येष्ठ थे। शेषनाग ने भगवान विष्णु की तपस्या की और उनकी शैय्या बनने का गौरव प्राप्त किया। तब शेषनाग के क्षीरसागर में चले जाने के बाद उनके छोटे भाई वासुकि को नागों का सम्राट बनाया गया। शेषनाग के पश्चात वासुकि सबसे शक्तिशाली नाग माने जाते हैं।

वासुकि महादेव के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने कड़ी तपस्या कर महादेव की प्रसन्न किया और उनके सानिध्य का वरदान पाया। तब से उनका स्थान भगवान शंकर के कंठ में है। जब देवों और दैत्यों ने समुद्र मंथन करने का निश्चय किया तो महादेव की कृपा से वासुकि को ही मंदराचल पर्वत की मथनी बनाया गया। उनके इस त्याग से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें नागमणि भी प्रदान की।

जब भगवान शिव ने त्रिपुर का संहार किया था तब यही वासुकि उनके धनुष की डोर बने थे। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा था। इन्हें नागराज की उपाधि प्राप्त है। इनके अतिरिक्त शेषनाग और तक्षक को भी ये उपाधि प्राप्त है। वैसे तो कश्यप की 1000 संतानों से 1000 नाग वंश चले पर उनमें से 8 नाग कुल प्रसिद्ध थे – अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख एवं कुलिक

जब वासुकि को ये पता चला कि शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी के श्राप के कारण समस्त नागवंश का नाश हो जाएगा तो उन्होंने भगवान शंकर से रक्षा की प्राथना की। तब महादेव ने बताया कि ऋषि जरत्कारु का विवाह अगर उनके ही नाम वाली किसी कन्या से हो तो उनकी संतान ही नागवंश का विनाश रोक सकती है।

वासुकि की बहन का नाम भी जरत्कारु था। उन्होंने उसका विवाह ऋषि जरत्कारु से कर दिया। दोनो के पुत्र हुए ऋषि आस्तीक। जब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने प्रसिद्ध सर्पयज्ञ किया तो उसमें सभी नाग गिर गिर कर जलने लगे। तक्षक को इंद्र ने किसी प्रकार बचा रखा था पर मंत्र के प्रभाव से वे भी यज्ञकुंड में गिरने ही वाले थे। तब वासुकि की आज्ञा से आस्तीक जनमेजय के पास पहुंचे और उस सर्पयज्ञ को बंद करवाया।

मान्यता है कि उस सर्पयज्ञ में 1000 में से 992 नाग कुल समाप्त हो गए और वही 8 नाग कुल बचे जिसका वर्णन ऊपर दिया गया है।

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