भारत की ही फिल्मों को “ऑस्कर अवॉर्ड” क्यों नहीं मिलता है? वजह हैरान कर देगी

फिल्में बनाता है और जबकि पूरी दुनिया में इसकी केवल आदि ही फिल्में बन पाती है, लेकिन इसके बावजूद अपनी 100 साल के सिनेमैटिक हिस्ट्री में हमारा देश एक भी ऑस्कर नहीं जीत पाया है। “स्लमडॉग मिलियनेयर ,लाइफ ऑफ पाई और गांधी” जैसी फिल्मों में भले ही भारतीय एंगल का एक खास महत्व है। लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि इन फिल्मों को किसी भी भारतीय डायरेक्टर ने नहीं बनाया है और अभी तक सिर्फ 5 भारतीयों ने ही ऑस्कर जीते हैं। इनमें भानु अथैया ,रसलपुर कुट्टी ,ए आर रहमान और गुलजार शामिल है। और इसके अलावा सत्यजीत रेड को 1991 में ऑस्कर सेरेमनी में “लाइफटाइम अचीवमेंट” का अवार्ड मिला था।  

 credit: third party image referenceदोस्तों किसी भी फिल्म को ऑस्कर अवार्ड जीतना किसी भी। छोटे देश के लिए ग्लोबल लेवल पर एक्स्पोज़र पाने का सबसे बेहतरीन जरिया होता है और कई देशों में ओलंपिक और नोबेल अवॉर्ड्स की तरह ही ऑस्कर की जीत का भी जश्न मनाया जाता है। एक ऑस्कर अवॉर्ड नॉमिनेशन किसी भी देश के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है और कई देशों में तो इस जीत को वर्ल्ड कप की तरह सेलिब्रेट किया जाता है तो ऐसे में हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि अपने 100 साल की सिनेमैटिक हिस्ट्री में भारत ने अब तक एक भी फिल्म ऐसी क्यों नहीं बनाई है। जो देश को ऑस्कर अवॉर्ड दिला सकें। दरअसल कुछ फिल्मों को छोड़ दिया जाए तो भारत की तरफ से ऑस्कर में गई ज्यादातर फिल्में औसत दर्जे की रही है।  

साल 1970 में फिल्म “मदर इंडिया” ऑस्कर जीतने के सबसे करीब पहुंची और यह फिल्म सिर्फ 1 वोट से ऑस्कर जीतने से चूक गई थी। इसके बाद जो फिल्में ऑस्कर की टॉप 5 में पहुंच पाई। उनमें 1988 में मीरा नायर की फिल्म “सलाम मुंबई” और आमिर खान की 2001 में आई फिल्म “लगान” थी। 1957 से 2012 तक भारत ने ऑस्कर में 45 फिल्में भेजी। और जिनमें से 30 फिल्में बॉलीवुड से थी, लेकिन इनमें 8 फिल्में ऐसी थी जिन्हें नेशनल अवार्ड मिला था।

दोस्तों मदर इंडिया के 30 सालों के बाद भी भारत की किसी भी फिल्म का टॉप 5 में ना पहुंच पाना। यह साफ करता है कि हम अपने देश की बेहतरीन फिल्में ऑस्कर के लिए नहीं भेज रहे हैं। साल 1998 में फिल्म “जींस” को ऑस्कर की आधिकारिक एंट्री के लिए भेजा गया था। जबकि श्याम बेनेगल की फिल्म “समर” एक बेहतरीन फिल्म थी और इसे नेशनल अवार्ड भी मिला था, लेकिन इसके बावजूद एक एवरेज फिल्म जींस को ऑस्कर के लिए भेजा गया क्योंकि इस फिल्म के साथ ऐश्वर्या राय ने अपना डेब्यू किया था।  

दोस्तों ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड का खिताब जीत चुकी थी और उनकी ग्लोबल पहचान के चलते उनकी फिल्म को ऑस्कर में पुश मिला। इसी तरह साल 2012 में आई फिल्म “बर्फी” को ऑस्कर के लिए भेजा गया था और इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा परफॉर्म भी किया था लेकिन इस फिल्म मे चार्ली चैपलिन की कॉमेडी सींस कॉपी किए गए थे।

जिस कारण इस फिल्म के ऑस्कर में चांसेस काफी कमजोर हो गए थे। कई बार ऐसा भी होता है कि भारत की तरफ से कई बेहतरीन फिल्मों को ऑस्कर के लिए भेजा जाता है, लेकिन इंटरनेशनल मार्केट में इन फिल्मों की पब्लिसिटी ठीक ढंग से नहीं हो पाती है और जिस कारण यह फिल्में बढ़िया एक्स्पोज़र के अभाव में छुप जाती है। बॉलीवुड में रोमांटिक फिल्मी ज्यादा बनाई जाती है। इसके अलावा बॉलीवुड का बेसिक मॉडल ऐसा है जहां पर फिल्म मेकिंग के लेवल पर समझौता होता है और फिल्मे केवल लोकल बिजनेस को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है और कई बार यह फिल्में ऑस्कर के लेवल को छू भी नहीं पाती है और यही कारण है कि बॉलीवुड का एक बड़ा हिस्सा केवल एवरेज फिल्मों पर ही फोकस करता है।  

इसके अलावा भारत में अभी जिस लेवल का सिनेमा है उस हिसाब से भारत सिर्फ बेस्ट फॉर लैंग्वेज फिल्म के अवार्ड के लिए रेस कर सकता है क्योंकि अभी भी हम टेक्नोलॉजी कॉस्ट्यूम और मेकअप जेसी कैटेगरी में। काफी पीछे है हालांकि बीते कुछ समय में कंटेंट बेस्ड सिनेमा का बोलबाला भारत में बड़ा है और उम्मीद करते हैं कि जल्दी ही भारत के ऑस्कर का सूखा खत्म हो सकेगा।  

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