मणिकर्णिका घाट पर 24 घंटे चिता क्यों जलती रहती है? जानिए कारण

” इहां क चिता कब्बो शांत ना होला,बाबा भोलेनाथ क किरपा बा इहा ए भैया “

ये शब्द आपको मणिकर्णिका या हरिश्चंद्र घाट के आसपास सुनने को मिल जाएगा,क्योंकि आमतौर पर यहां सैलानी आते रहते हैं अपनी जिज्ञासा और कौतूहल का समाधान ढूंढने ।

खेले मसाने में होरी दिगम्बर ,खेले मसाने में होरी

यही नहीं होली के चंद दिनों पहले ही मणिकर्णिका पर चिता भस्म से होली खेली जाती है ।

मणिकर्णिका घाट पर रोज़ाना सैकड़ों चिताएं जलती हैं,वहां पहुंचकर चिता को देखकर सभी शांत होकर जीवन के आधार को समझते हुए स्वीकार करते हैं।

यहां चौबीसों घंटे चिता जलती रहती है,इस संबंध में पुरानी कथाओं और बनारस में रहने वाले प्रकांड पंडित की मानें तो 3 कहानियां सुनने को मिलती हैं।

१.जब पिता के व्यवहार से आदिशक्ति सती आक्रोशित हो गई थीं तब उनके कान की बाली जिसका नाम मणिकर्णिका था वो यहां गिर गया था,जिसके बाद इस श्मशान का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा।

२.भगवान विष्णु ने माता पार्वती और शिव जी के स्नान के लिए एक कुंआ खोदा था,एक बार जब शिव जी यहां स्नान कर रहे थे तब उनका कुंडल वहीं गिर गया था,जिसके बाद कभी वो मिला नहीं ,इस वजह से भी इसे मणिकर्णिका घाट कहते हैं,और उस कुंड का नाम पड़ा मणिकर्णिका कुंड।

चूंकि यहां शव हमेशा जलते रहते हैं इस वजह से यहां की आग कभी बुझ ही नहीं पाती है,इसलिए ही यहां की चिता में 24 घंटे आग रहती है।

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