महात्मा गाँधी जैसा महापुरुष भारत में दूसरा क्यों नहीं पैदा हुआ?
भारत भूमि मे महापुरुष पैदा होते हि रहते है ओर होते हि रहे है. भारत भूमि मे महात्मा जी से पहले भी बहुत महापुरुष हुए है जैसे देव दानवों के युग के बाद रामायण काल से पहले मनु फिर इच्छवाकु मान्धाता मुचुकुन्द हरिस्चन्द्र विश्वामित्र वशिष्ठ राजा भारत फिर महाभारत काल मे युधिष्ठिर कर्ण भीष्म कृष्ण व्यास बलराम अर्जुन जरासंध आदि के बाद फिर राजा बिम्बिसार अजातशत्रु महात्मा बुद्ध, महावीर जेन आदि. फिर चाणक्य चन्द्रगुप्त राजा महापद्मनंद. महापुरुषों से भारत का इतिहास भरा पढ़ा है. इतने राजा हुए ओर उनहोने भारत को सोने कि चिड़िया बना कर रखा. विदेशी भारत के साथ आकर व्यापार करने ओर यहां कि धन सम्पत्ति को लूटने को लालायित हुए. ज़ब कमजोर राजा हुए भारत कि पश्चिमी सीमा से विदेशी लूट करने आये. गुप्त काल मे समुद्रगुप्त के समय मे भारत सोने कि चिड़िया था. हर्ष के समय मे भारत बहुत सम्पन्न था. चीन के यात्री फाहियान और ह्वेनसांग आदि यहां आकर बोध धर्म कि दीक्षा लेते थे.
इसके बाद भारतीय राजा राजपूत क्षत्रिय आपसी झगड़ो मे उलझ गया ओर भारत के पश्चिम मे भविष्यपुराण के अनुसार एक म्लेच्छ ध्रर्म ने जन्म लिया. उन म्लेच्छों का काम लूटपाट मारपीट छिना झपटी हि था ओर इन्होने भारत को लूटने कि इच्छा से लगातार आक्रमण किये. फिर भी भारत ने पुरे 400 साल बाद हि म्लेच्छ भारत भूमि को फतह कर पाए. फिर उन लोगों ने भी इस भूमि को अपना लिया ओर यही रहकर राज किया ओर इस भारत भूमि को सम्पन्न ओर श्रेष्ठ बनाकर रखा. उनमे भी बड़े बड़े अच्छे लोग हुए. भारत मे सुव्यवस्था कि. जनता को सुखी रखा. भारत कि जीडीपी अकवर के समय सोलहवीं शदी मे पूरी दुनिया कि जीडीपी कि 30–40 % थीं. भारत का व्यापार मे दुनिया मे हिस्सा लगभग एक चौथाई से अधिक था. इस समय महापुरुष राणा प्रताप, वीर शिवाजी, सन्त कबीर, सन्त स्वामी समर्थ रामदास, मीरा बाई, तुलसीदास, रहीम, गुरु नानक, रशखान आदि लोग हुए.
इसके बाद अंग्रेज आये भारत मे व्यापार करने लेकिन यहां कि राजनेटिक स्तिथि देखकर राजाओं नवाबों ओर बादशाहों कि मज़बूरिया समझकर राजनितिक रूप से समर्थ होकर उनके मामलों मे हस्तक्षेप करने लगे. इस समय भी राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारक हुए जिन्होंने सती जैसी कुप्रथा को समाप्त कराया. स्वामी राम कृष्ण जैसे काली माता के उपासक पैदा हुए. उन्ही के शिष्य विवेकानंद ने भारत के सनातन धर्म का ऐसा झंडा अमेरिका मे गाड़ा कि जो आज तक जमा हुआ है. भारत कि संस्कृति कि अभी तक धाक जमी है. विवेकानंद से पहले भारत के प्रथम स्वतंत्र संग्राम के समय आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती हुए जिन्होने आर्य समाज कि स्थापना कि ओर सत्यार्थप्रकाश जैसा ग्रन्थ लिखा जिसमे वेदों कि तरफ जाने का कहा है. भारत मे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे इनका बडा महत्वपूर्ण दायित्व था.
तब कहि जाकर गाँधी जी पैदा हुए ओर वे भी महान आत्मा थे. उन्होंने भी भारत को नया सन्देश दिया जो कि पहले हि भारत के लोग कह चुके थे, लेकिन जैसे गीता मे भगवान ने कहा है कि अर्जुन जो ज्ञान मे तुझे कह रहा हु, इसे सबसे पहले मेने सूर्य से कहा था, सूर्य ने मनु से ओर उसने इच्छवाकु से. लेकिन बहुत समय से लोग इसको भूल गए है ओर परम्परा से इस ज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाए है. इसलिए तुझसे कहता हु. ठीक इसी तरह गाँधी जी ने शांति, अहिंसा, सत्याग्रह, झूठ न बोलना आदि पुनः लोगो को याद दिलाये. शांति के दूत बुद्ध को कोण नहीं जनता. ज्ञान कि मुर्ति शंकर को कोण नहीं जनता जिन्होंने आर्य संस्कृति फिर से पुनर्जीवित कि थीं. तो गाँधी न, पहले शांति दूत थे, न पहले अहिंसक थे, न पहले सन्त थे. लेकिन उन्होंने दासता कि बेड़ियों मे जकड़े भारत के आम आदमी को फिर से जगाया. ब्रह्मचर्य, आयुर्वेद ओर पुरानी पद्धति प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाया ओर अपनाने को लोगो को भी कहा .
सादा रहना, कम खाना, गुणयुक्त खाना, महान विचार रखना, उनका पालन करना ओर आदमी को आदमी समझना, उनमे भेदभाव न करना, अश्पृश्यता को समाप्त करना, ब्रह्मचर्य की तर्फ जाना, सत्य पर अडिग रहना, अपनी बात निर्भय होकर कहना आदि नियम अपनाकर लोगो मे आत्म विश्वास पैदा किया. इनके समय मे भी ओर इनके बाद भी कई ज्ञानी लोकप्रिय लोग हुए. इनके शिष्य भूदान के समर्थक सन्त विनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया आदि ने भी साम्राजयवाद के विरोध मे महान जन समर्थन जुटाया. दलाई लामा शांति का पाठ पढ़ाने वाले ओर बोध धर्म के अनुयायी हैं जो भी महातमा गाँधी के समय मे हुए हैं ओर शांति की चाह मे अपना देश भी छोड़ भारत भूमि पर हि हैं. भगत सिंह, चन्द्रसेखर आज़ाद, बटुकेश्वर दत्त, खुदीराम, सुभाष चंद्र बोस आदि भी महान विभूतिया थे ओर भारत की आजादी मेहत्वपुर्ण भूमिका निभाने वाले महान क्रन्तिकारी विचारधारा से प्रभावित थे. सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी भारत की पूर्वी सीमा तक अंग्रेज फ़ौज को हराकर धकेलते हुए भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह को जीतकर मिजोरम तक घुस गयी थी. यह उनका दृढ निस्चय, डेडिकेशन, भारत भूमि से प्यार ओर साथियों के सहयोग, भारत वीरों के विश्वास ओर समर्पण से हि सम्भव हुआ.