महाभारत के किस पात्र ने युद्ध में लड़ाई नहीं की थी? जानिए
महाभारत मे कई योद्धा ऐसे थे जिन्होंने उसमे भाग नहि लिया. इसमें सबसे परमुख थे महात्मा विदुर. विदुर हस्तिनापुर कै राज्य मंत्री होने के कारण कौरव पक्ष से जुड़े हुए थे. महाराज धृतराष्ट्र को समर्पित थे. परन्तु उनकी निष्ठा सत्य कि तरफ होने से वह पांडव पक्ष के लिए भी सद्भावना रखते थे. पांडवों के वनवास और अज्ञातवास के समय उनकी माता कुंती विदुर के ही घर मे रही थी और विदुर जी ने कुंती कि देखभाल कि थी.
शांति का प्रस्ताव लेकर ज़ब श्रीकृष्ण महाराज धृतराष्ट्र के समक्ष रखें जाने के उपरांत श्रीकृष्ण जी ने दुर्योधन के आतिथ्य को नकार कर विदुर जी के घर रुकना ही श्रेयस्कर समझा. इससे महात्मा विदुर कि निष्पक्षता और सत्यनिष्ठ धर्मनिष्ठ होने का पता चलता है. महात्मा विदुर ने महाभारत के विनाशकारी महा युद्ध से दूर रहना ही उचित समझा और युद्ध को रोकने और पांडवो को उत्तराधिकार देने कि नीति का समर्थन किया. उन्होंने महाराज धृतराष्ट्र को बहुत समझाया तथा दुर्योधन कि कुबुद्धि तथा शकुनि कै षणयंत्रों से राजा को सावधान भी करते रहे. परन्तु परस्तिथियाँ उनके सामर्थ्य से बाहर हो गयी तो उन्होंने युद्ध से दुरी बना लि. न पांडव पक्ष मे रहे न कौरव पक्ष मे.
इनके अलावा महाराज धृतराष्ट्र ने भी युद्ध मे भाग नहि लिया था. जबकि उन्होंने अपने पक्ष से दुर्योधन को पुरा कार्यभार सौंप दिया और उसने राजा का उत्तराधिकारी बनकर अपनी सेना का संचालन किया. इनकी तरफ से पितामह भीष्म, गुरु द्रोण तथा अन्य सम्वन्धी सहयोगियों ने ग्यारह अक्षोहिणी सेना एकत्रित कर पांडवों कै समक्ष भीषण चुनौती पेश कि.
कृष्ण भगवान ने भी युद्ध मे सीधे तौर पर भाग नहि लिया. उन्होंने शस्त्र न उथाने कि शपथ लि लेकिन दोनो पक्ष को सहायता दी. वह लड़ाई से स्वयं दूर ही रहे परन्तु उन्होंने अर्जुन के सारथी बनकर पांडवो को युद्ध मे निर्देशित करते रहे. योजनाए बनाते रहे तथा सूत के व्यवसाय को सम्मान भी दिया. जिसे बार बार छोटी जाती कहकर अपमानित किया गया.
.कृष्ण कै भाई बलराम भ युद्ध से दूर रहे. लेकिन उन्होंने कृष्ण जी कै किसी काम मे हद्तक्षेप नहि किया. वह कृष्ण जी कै हथियार न उठाने से विचलित होकर शांति हेतु इस युद्ध कै समय तीर्थ यात्रा पर चले गए और युद्ध कै अंतिम दिन कुरुक्षेत्र पहुंचे. तब भीम और दुर्योधन अंतिम गदा युद्ध कर रहे थे. इसमें हुए नियम उल्लंघन से भीम पर कुपित हुए और उसे दुर्योधन कि जांघों मे गदा प्रहार कै लिए दोषी मानकर मरने दौड़ पढ़े.
.श्रीकृष्ण कै साले राजा रुक्म जो रुक्मणि कै भाई थे, भी युद्ध मे भाग लेने आये लेकिन इनको अपने शेखी बघारने कै कारण न पांडवों ने अपने पक्ष मे मिलाया न कौरवों ने और इनको युद्ध क्षेत्र छोड़ना पढ़ा.
सबसे अधिक महत्वपूर्ण था उडीपी के महाराज का युद्ध मे दोनों पक्षो के लिए खाने कि व्यवस्था का कार्यभार लेना, सम्हालना और निष्पक्ष भाव से सेना हेतु उचित रूप से खान पान का ध्यान रखना. ये युध मे शामिल हुए लेकिन सबके हित मे काम किया और निष्पक्ष रहे.