महाभारत में रथ और सारथी का इतना महत्व बताया गया है जबकि रामायण में नहीं, ऐसा क्यों? जानिए वजह

महाभारत के युद्ध में बड़े- बड़े रथियों और महारथियों का वर्णन है लेकिन रामायण में रथ और रथियों का वर्णन कम है।

है ही नहीं ऐसा हम नहीं कह सकते।

इसका स्पष्ट कारण तो यही है कि वानरों की युद्ध शैली मानवों की युद्ध शैली से भिन्न थी। उनके हथियार थे पेड़, शिलायें और स्वयं उनके हाथ के नाखून।

श्री हनुमान जी को हम गदा लिए कहते जरूर हैं लेकिन रामायण मैं उनके गदा युद्ध का कोई प्रसंग नहीं है। उनकी और अन्य वानरों की शैली है कि जो मिले उसी को हथियार बना लो।

रावण की और से तो कई महारथी सामने आए लेकिन वानरों की युद्ध शैली से हतप्रभ रह गए।

राम – रावण युद्ध में भगवान् राम को बिना रथ के युद्ध करते देख श्री हनुमान जी ने उन्हें अपनी पीठ पर चढ़ा लिए और वही उनके रथ बन गए।

रावण और मेधनाद दोनों अपने दिव्य और वरदान से प्राप्त हुए रथ पर चढ़कर ही युद्ध करते थे लेकिन राम और लक्ष्मण दोनों ने पैदल ही दोनों को कड़ी टक्कर दी और परास्त भी किया।

इंद्र ने राम जी के लिए रथ भेजा इसका वर्णन भी रामायण में है।

संक्षेप में इतना कहना पर्याप्त होगा कि श्री राम ने यह युद्ध अपने तपस्वी जीवन के अनुसार कम से कम संसाधनों की प्रयोग करते हुए जीता और अधिकतम समय उन्होंने पैदल ही बड़े – बड़े शूरवीरों को धूल चटा दी। लक्ष्मण जी ने भी अपने तपस्वी भाई का अनुसरण करते हुए रथ का प्रयोग नहीं किया।

अन्य वानरों को रथ की जरूरत थी नहीं।

महाभारत में एक बार अर्जुन को कौरव महारथियों ने घेर लिया जबकि वह रथ पर सवार नहीं थे। फिर भी उन्होंने सभी महारथियों को परास्त कर दिया।

इससे ज्ञात होता है कि यदि योद्धा कुशल हो तो वह रथ पर सवार हो या न हो, विपक्षी योद्धाओं को परास्त कर सकता है।

जब रथ और रथी की बात चल ही रही है तो रामचरितमानस के विजय रथ के प्रसंग इस उत्तर को समाप्त करना उचित लग रहा है।

इस प्रसंग के अनुसार विभीषण जी राम को बिना रथ के और रावण को रथ पर सवार देखकर दुखी हो गए। तब राम जी ने उन्हें एक बहुत सुन्दर उपदेश दिया जो इस प्रकार है:

रावन रथी विरथ रघुवीरा। देखि विभीषण भयहु अधीरा।

अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरण कह सहित सनेहा। 1

नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितव बीर बलवाना।

सुनहू सखा कह कृपानिधाना। जेहि जय होहि सो स्यंदन आना। 2

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ ध्वजा पताका।

बल विवेक दम परहित घोरे। क्षमा दया समता रजु जोरे। 3

ईश भजन सारथी सुजाना। विरति चार्म संतोष कृपाना।

दान परसु बुधि शक्ति प्रचंडा। वर विज्ञान कठिन कोदंडा। 4

अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।

कवच अभेद विप्र गुर पूजा। एहि सम विजय उपाय न दूजा। 5

सखा धर्ममय अस रथ जाके। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताके।

महा अजय संसार रिपु जीति सकहि सो बीर। 6

जाके अस रथ होइ दृढ सुनहु सखा मतिधीर। 80

यह धर्ममय रथ महाभारत में कौरव पक्ष के पास नहीं था लेकिन पांडव पक्ष के पास था। ठीक इसी तरह यह रथ राम और उनकी सेना के पास था लेकिन रावण और उसकी सेना के पास नहीं।

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