महाभारत में विदुर की मृत्यु कैसे हुई ? जानिए

विदुर महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक हैं। वे कुरुवंश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने सदा धृतराष्ट्र और दुर्योधन के गलत कामों का विरोध किया। उन्हें सही सलाह प्रदान की। कुरुक्षेत्र युद्ध के विरोध में विदुर ने अपना मंत्री पद त्याग दिया था।

‘विदुर’ शब्द का अर्थ कुशल, बुद्धिमान अथवा मनीषी होता है। वह एक बुद्धिमान और कुशल मंत्री व सत्पुरुष थे।

विदुर का जन्म

हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों अंबिका और अंबालिका को संतान सुख देने में असमर्थ थे। अंत में क्षय रोग से पीड़ित होकर निसंतान ही मृत्यु को प्राप्त हुए।

उनकी माता सत्यवती ने कुरु वंश को आगे बढ़ाने के लिए विवाह से पूर्व अपने पुत्र वेदव्यास को नियोग से संतान उत्पन्न करने के लिए बुलाया।

वेदव्यास सबसे पहले बड़ी रानी अंबिका के पास गये। अंबिका ने उनके तेज़ से डर कर अपने नेत्र बंद कर लिये। वेदव्यास लौटकर सत्यवती से बोले,

“माता अंबिका का बड़ा ही तेजस्वी पुत्र होगा। किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा।”

सत्यवती को यह सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ। उन्होंने इस बार वेदव्यास को अंबालिका के पास भेजा। अंबालिका भय से पीली पड़ गई। वेदव्यास ने बताया कि उसका पुत्र क्षय रोग से पीड़ित रहेगा।

जब सत्यवती के आदेश पर वेदव्यास दोबारा अंबिका के पास गए तो उसने अपनी दासी को आगे कर दिया। दासी ने शांत भाव से वेदव्यास को स्वीकार किया।उसी दासी की कोख से विदुर का जन्म हुआ। विदुर कुशाग्र बुद्धि व संयम के स्वामी थे।

विदुर की मृत्यु

विदुर अपनी वृद्धावस्था में एक संत के रूप में अपने सौतेले भाई धृतराष्ट्र और अपनी भाभियों गांधारी और कुंती के साथ जंगलों में चले गए थे। कहते हैं वहीं वन में लगी आग में जलकर उनकी मृत्यु हो गई।

विदुर की मृत्यु की दूसरी कथा (अंतिम इच्छा)

एक और कथा के अनुसार जब महाभारत युद्ध चल रहा था तब विदुर ने श्रीकृष्ण के पास जाकर उनसे एक निवेदन किया। उन्होंने कहा,

“हे प्रभु, मैं इतना प्रलयकारी युद्ध देखकर मुझे बहुत आत्मग्लानि का अनुभव हो रहा है। अतः मेरी मृत्यु के बाद मैं अपने शरीर का एक भी अंश इस धरती पर मुझे आप कृपया सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर दें। यही मेरी अंतिम इच्छा है।”

श्रीकृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा स्वीकार की और उन्हें यह आश्वासन दिया कि उनकी मृत्यु के पश्चात वे उनकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद विदुर वन में चले गए। युद्ध बीते कुछ ही दिन हुए थे। पांचों पांडव विदुर जी से मिलने वन में पहुंचे। युधिष्ठिर को देखते ही विदुर ने प्राण त्याग दिए और वे युधिष्ठिर में ही समाहित हो गए।

इस घटना से युधिष्ठिर को बहुत आश्चर्य हुआ। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि विदुर धर्म के अवतार थे। जबकि तुम साक्षात धर्मराज हो। अतः तुम्हारा अंत होने के कारण वह तुम में समाहित हो गए।

उसके बाद श्रीकृष्ण ने विदुर की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए उनके शरीर को सुदर्शन चक्र में बदल दिया।

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