महाभारत युद्ध में जीवित रहा दुर्योधन का वह भाई, जो पांडवों की ओर से लड़ा

महाभारत में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जो लोगों को आश्चर्यचकित कर देती हैं और रोचक भी होती हैं। कौरवों और पांडवों के बीच 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 18 योद्धा जीवित बच गए थे। उनमें से एक दुर्योधन के भाई युयुत्सु भी थे। इस महायुद्ध में दुर्योधन के सभी भाई वीरगति को प्राप्त हुए थे, लेकिन युयुत्सु बच गए। अब आपके मन में सवाल यह होगा कि युयुत्सु कौन थे? वे इस युद्ध में कैसे बच गए? तो आज हम आपको युयुत्सु के बारे में बताते हैं।

कौन थे युयुत्सु

धृतराष्ट्र को गांधारी से दुर्योधन समेत 100 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। लेकिन धृमराष्ट्र के दो और पुत्र थे, जो उनकी दासियों से हुए थे। एक का नाम विदुर और दूसरे का नाम युयुत्सु था। विदुर अपने समय के विद्वान व्यक्तियों में से एक थे, तो युयुत्सु भी धर्मात्मा थे। युयुत्सु और विदुर दोनों की ​ही शिक्षा राजकुमारों के तरह हुई थी। उनको समान सम्मान दिया जाता था।अब सवाल यह है कि युयुत्सु ने पांडवों की ओर से लड़ने का फैसला क्यों किया? दरअसल जब युद्ध की घोषणा हुई तो पहले ही दिन युधिष्ठिर ने कहा कि यह धर्म युद्ध है। वे अधर्म के खिलाफ लड़ रहे हैं। यदि कोई भी व्यक्ति अधर्म के विरुद्ध लड़ना चाहता है, तो उसका उनकी सेना में स्वागत है। युयुत्सु तब कौरवों की सेना में थे, धर्म युद्ध की बात सुनकर धर्मात्मा युयुत्सु पांडवों की सेना में शामिल हो गए।

पांडव सेना में युयुत्सु को मिली थी ये जिम्मेदारी

युधिष्ठिर ने युयुत्सु की कार्यक्षमता और बुद्धिमता को देखते हुए सेना के लिए अस्त्र-शस्त्रों तथा रसद की व्यवस्था देखने की जिम्मेदारी दी थी। उन्होंने पूरे युद्ध के समय पांडव सेना के लिए अस्त्र-शस्त्रों तथा रसद की कमी नहीं होने दी।

युधिष्ठिर के मंत्री बने थे युयुत्सु

महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों को हस्तिनापुर का राज-पाट मिला तो युधिष्ठिर ने युयुत्सु को अपना मंत्री बनाया। परीक्षित के वे संरक्षक भी रहे। जब गांधारी और धृतराष्ट्र जंगल के दानावल में मृत्यु को प्राप्त हुए, तब युयुत्सु ने ही उनका अंतिम संस्कार किया

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