मेडिकल इन्सुरेंस के ऐसे क्या छिपे तथ्य है जो सबको पता होना चाहिये? जानिए
सबसे बड़ा तथ्य यह है कि क्लेम लेना आसान नहीं होगा. और नेशनल इन्शुरेन्स से तो बिलकुल भी नहीं. बाकी कम्पनियों का तो पता नही पर नेशनल इन्सुरेंस का १५ साल तक प्रीमियम भरने के बाद पहली बार , पिछले हफ्ते ही बेटी मैक्स हॉस्पिटल पटपरगंज दिल्ली में एडमिट हुई . एडमिशन के समय ही पालिसी जमा करवा दी. कल्पना कीजिये : ऐक हाथ में ड्रिप लगी है , मुहं पर आक्सीजन मास्क और फोन आता है की अपना आधार कार्ड और पैन कार्ड जमा करवाईये . भाग्य से दोनों चीजें फोन में हीं थीं और मरीज भी होश में था सो मेल पर भेज दीं. अगले दिन सुबह फोटो माँगा गया वो भी दे दिया.
शाम को हॉस्पिटल से डेढ़ लाख रूपये जमा करने को कहा गया क्योंकि इन्सुरेंस एप्रूव नहीं हुआ . इधर उधर हाथ पैर मारे, एजेंट ने बताया की मेरा (यानी पिताजी का) भी आधार कार्ड, पैन कार्ड और फोटो चाहिए. भेज दिये. मामला फिर वहीं का वहीँ. पता चला के. वाई . सी. नहीं हुआ है. धड़कते दिल से वो डिटेल भी भेज दिये. डर था की कहीं मेरे स्वर्गवासी माता पिता का सेल्फ attested फोटो न मांग लें. कल बेटी को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी . दोपहर को फिर फोन आ गया की के. वाई. सी . में कमी है. मुझे इतना गुस्सा आ गया , मैंने अश्लील से अश्लील गलियां सुना दीं . खैर शाम को बिलिंग के समय तक क्लेम आगया.
तो सबसे बड़ा सत्य यही है. ये ना समझिएगा की पालिसी डिटेल दे दिये और काम पूरा हो गया. सरकारी निक्क्मों का सर्वोपरी कार्य फाईल का पेट भरना होता है.
समझ से बाहर है की ये आधार कार्ड किस मर्ज की दवा है ? क्या आधार कार्ड का नंबर और फिंगर प्रिंट का मिलान करके ये सारी सूचना प्राप्त नहीं की जा सकती ? सरकारी निक्क्मों से अक्ल का इस्तमाल करने की अपेक्षा ही व्यर्थ है.