युधिष्ठिर के शंख का क्या नाम था ?

युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय था।

महाभारत में सभी प्रमुख योद्धाओं के शंखों का नाम दिया है। आइये एक दृष्टि डाल लेते हैं:

  • पाञ्चजन्य: ये श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध शंख था। जब श्रीकृष्ण और बलराम ने महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा समाप्त की तब उन्होंने गुरुदक्षिणा के रूप में अपने मृत पुत्र को माँगा। तब दोनों भाई समुद्र के अंदर गए जहाँ श्रीकृष्ण ने शंखासुर नामक असुर का वध किया। तब उसके मरने के बाद उसका शंख (खोल) शेष रह गया जो श्रीकृष्ण ने अपने पास रख लिया। वही पाञ्चजन्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  • गंगनाभ: ये गंगापुत्र भीष्म का प्रसिद्ध शंख था जो उन्हें उनकी माता गंगा से प्राप्त हुआ था।गंगनाभ का अर्थ होता है “गंगा की ध्वनि” और जब भीष्म इस शंख को बजाते थे तब उसकी भयानक ध्वनि शत्रुओं के ह्रदय में भय उत्पन्न कर देती थी। महाभारत युद्ध का आरम्भ पांडवों की ओर से श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य और कौरवों की ओर से भीष्म ने गंगनाभ को बजा कर ही की थी।
  • हिरण्यगर्भ: ये सूर्यपुत्र कर्ण का शंख था। कहते हैं ये शंख उन्हें उनके पिता सूर्यदेव से प्राप्त हुआ था। हिरण्यगर्भ का अर्थ सृष्टि का आरम्भ होता है और इसका एक सन्दर्भ ज्येष्ठ के रूप में भी है। कर्ण भी कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे।
  • अनंतविजय: ये महाराज युधिष्ठिर का शंख था जिसकी ध्वनि अनंत तक जाती थी। इस शंख को साक्षी मान कर चारो पांडवों ने दिग्विजय किया और युधिष्ठिर के साम्राज्य को अनंत तक फैलाया। इस शंख को धर्मराज ने युधिष्ठिर को प्रदान किया था।
  • विदारक: ये महारथी दुर्योधन का भीषण शंख था। विदारक का अर्थ होता है विदीर्ण करने वाला या अत्यंत दुःख पहुँचाने वाला। ये शंख भी स्वाभाव में इसके नाम के अनुरूप ही था जिसकी ध्वनि से शत्रुओं के ह्रदय विदीर्ण हो जाते थे। इस शंख को दुर्योधन ने गांधार की सीमा से प्राप्त किया था।
  • पौंड्र: ये महाबली भीम का प्रसिद्ध शंख था। इसका आकर बहुत विशाल था और इसे बजाना तो दूर, भीमसेन के अतिरिक्त कोई अन्य इसे उठा भी नहीं सकता था। इसकी ध्वनि इतनी भीषण थी कि उसके कम्पन्न से मनुष्यों की तो क्या बात है, अश्व और यहाँ तक कि गजों का भी मल-मूत्र निकल जाया करता था। कहते हैं कि जब भीम इसे पूरी शक्ति से बजाते थे जो उसकी ध्वनि से शत्रुओं का आधा बल वैसे ही समाप्त हो जाया करता था। ये शंख भीम को नागलोक से प्राप्त हुआ था।

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