यूपी के बिजलीकर्मियों को खुद की भलाई के लिए बदलना होगा काम का रवैया, नहीं तो निजीकरण तय

कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही उत्तर प्रदेश सरकार ने
प्रदेशवासियों के हित में बिजलीकर्मियों के कार्य बहिष्कार को खत्म
कराने के लिए भले ही ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का फैसला टाल
दिया है, लेकिन सरकार के अगले कदम का जिम्मा सीधे-सीधे
विभागीय कर्मियों के कंधे पर ही होगा।

यदि वे अपना रवैया बदलते
हुए मन,वचन और कर्म से जुटकर बिजली चोरी पर अंकुश लगाते न
दिखे तो 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक के घाटे में पहुंच चुके ऊर्जा
निगम के लिए आगे समझौते की कोई राह नहीं बचेगी। विद्युत वितरण
कंपनियों (डिस्कॉम) की लापरवाही से सफेद हाथी बन चुके बिजली
विभाग को घाटे और कर्ज पर पालना सरकार के लिए भी आसान नहीं
होगा।

बिजलीकर्मियों को वेतन तक के लाले पड़ सकते हैं। गांव हो या
शहर, जनता चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति चाहती है। सरकार की भी
यही योजना और संकल्प है, लेकिन आर्थिक रोड़े बड़े होते जा रहे हैं।


पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के निजीकरण के सरकार के
फैसले और फिर बिजली कर्मियों के आंदोलन से यह तथ्य भी उभर
आए कि आखिर ऊर्जा निगम या सरकार को निजीकरण का विकल्प
चुनना क्यों पड़ा।

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