रेलवे में डेमू, मेमू, ट्राम,मेट्रो और जो सामान्य अन्य ट्रेनें चलती हैं इन सब मे क्या अंतर हैं ?

डेमू और मेमू शब्द EMU (Electric Multiple Unit) से निकले हुए हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सबसे पहले EMU आयी बम्बई में। इसलिए पहले EMU को समझना पड़ेगा। यह ओवरहेड बिजली के तारों से बिजली लेकर चलती है। इसके रैक में चढ़ने के लिए फुटस्टेप नहीं होते। अतः इसके प्लेटफार्म ऊँचे ही बनाने पड़ते हैं। इसको मल्टीपल यूनिट क्यों बोलते हैं? EMU के 3–3 डिब्बों का एक यूनिट होता है उसका अपना इनबिल्ट एंजिन होता है और एक पेन्टोग्राफ होता है। 3–3 यूनिट के यूनिटों को जोड़ कर 6 या 9 या 12 या अब 15 डिब्बों तक की EMU चल रही हैं। ये रहा EMU का चित्र।

अब लागू होता है, “आवश्यकता आविष्कार की जननी होती हैं” का नियम।

देश में इलैक्ट्रीफिकेशन बड़ा। अब साधारण पैसिंजर ट्रेनों की जगह EMU ट्रेनें चलाने के बारे में सोचा गया। इसके लिए रोड साइड स्टेशन पर प्लेटफार्म ऊँचे करने पड़ते। यह एक बड़ा खर्च था। इसलिए EMU के रैक में ही फुटस्टेप लगा दिये गये और उनके डिब्बों की चौड़ाई सामान्य कोचो के समान 11फीट कर दी गयी, जबकि EMU के डिब्बों की चौड़ाई 12 फीट होती है।

अब चूँकि EMU को मोडिफाई करके एक ट्रेन बनी तो उसे Modified EMU (MEMU) बोला गया। इसमें फुटस्टेप होने से यात्री रेल लेवल प्लेटफार्म पर भी चढ़ उतर सकते हैं। इसका चित्र देखिए।

अब और आगे सोचा गया कि जहाँ रेलवे इलैक्ट्रिफिकेशन नहीं है वहाँ उपनगरीय पैसिंजर ट्रेन कैसे चलाया जाये।

इसके लिये रैक के मध्य में इनबिल्ट डीजल इंजन होता है और दोनों ओर लोको पायलट की केबिन होती है। डीजल एंजिन भी एक तरह का विद्युत एंजिन ही है। वह डीजल जनरेटर से अपनी बिजली प्राप्त करता है। इसलिए इन ट्रेनों को डेमू (DEMU) Diesel Electrical Multiple Unit कहते हैं। फुट स्टेप्स इनमें भी होते हैं।

DEMU का चित्र देखिये।

जम्मू से श्रीनगर (कुछ हिस्सा छोड़कर) तक कशमीर रेलवे में ये ही ट्रेने चल रही हैं। बाकी भारत में भी चल रही हैं।

अब आते हैं मेट्रो पर। ये भारत में सबसे पहले कलकत्ता में चली थी। लेकिन 25 दिसंबर 2002 को अटलबिहारी बाजपेयी जी ने दिल्ली में पहली मेट्रो ट्रेन शाहदरा से तीस हजारी मेट्रो स्टेशन तक राष्ट्र को समर्पित की थी। और अब आज दिल्ली की कल्पना बिना मेट्रो के कोई कर ही नहीं सकता। आज दिल्ली में मेट्रो का जाल फैल गया है और धीरे धीरे ये और महानगरों में भी अपने पैर पसार रही है। चेन्नई, बैगलोर, कोचीन, नागपुर, पुने, लखनऊ, जयपुर और मुंबई में चल गयी है या चलने वाली हैं। ये अन्डरग्राउंड और एलीवेटेड दोनो तरह के ट्रैक पर चल रही है। चित्र देखिये।

अब रह गयी ट्राम (Tram). ये अंग्रेजों के समय से बम्बई और कलकत्ता में चल रही थी। मुम्बई से तो इसे धीरे धीरे 1960 तक ही हटा दिया गया। यह रोड पर चलती है। रोड पर ही इसका ट्रैक डला होता है। कोलकाता में ये ट्राम अभी भी चल रही है। इसमें दो डिब्बे आपस में जुड़े होते हैं। इसमें एक कंडक्टर चलता है, वही टिकिट देता है। इसकी स्पीड कम होती है। इसका चित्र देखिए।

अब उपनगरीय गाड़ियों की कैटेगरी में मोनो रेल और बची है, जो अभी मुम्बई के थोड़े से इलाके में चलती है। उसके चित्र भी देखिये।

भारतीय रेल प्रगति कर रही है। 1947 में आपके पास क्या था, और अब क्या है? स्वयं विचार करिये और अपने देश पे फख़्र करना सीखिये। केवल आलोचना से कुछ नहीं होगा। समालोचना कीजिए। देश भी आपका है और भारतीय रेल भी आपकी।

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