लोहड़ी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? इसकी ऐतिहासिक कथा क्या है? जानिए

त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ मनाये जाते हैं। जैसे लोहरी में कहा जाता है कि इस दिन वर्ष की सबसे अंतिम लम्बी रत होती है। इसके अगले दिन से धीरे धीरे दिन बढ़ने लगता है। साथ इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता है। खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मौसम सुहाना सा लगता है। जिसे मिलजुलकर परिवार एवं दोस्तों के साथ मनाया जाता है इस तरह आपसी एकता बढ़ाना भी इस त्यौहार का उद्देश्य है।

लोहरी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है

कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव का तिरस्कार किया था और जामाता को यज्ञ में शामिल न करने से उनके पुत्री ने अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था। उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोहरी पर मनाया जाता है। और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिए जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मन सम्मान किया जाता है। इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी महिलाओं को बाँटा जाता है।

लोहरी के पीछे एक ऐतिहासिक कथा भी है जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता है। यह कथा अकबर के शामनकाल की है उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था। इसे पंजाब का नायक कहा जाता था। उन दिनों सन्दलबार नामक एक जगह थी। जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। वहां लड़कियों के बाजारी होती थी।

तब दुल्ला भट्टी ने इसका विरोध किया और लड़कियों को सम्मान पूर्वक इस दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया। इस विजय के दिन को लोहरी के गीतों में गया जाता है और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता है।

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