शुकदेव जी के पिता जी का क्या नाम था ?

शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को सात दिनों में श्रीमद् भागवत पुराण की कथा सुनाई थी। शुकदेव जी ने व्यास से ‘महाभारत’ भी पढ़ा था और उसे देवताओं को सुनाया था। शुकदेव मुनि कम अवस्था में ही ब्रह्मलीन हो गये थे।

शुकदेव जी के जन्म की दो प्रमुख कथाएं हैं।

एक कथा के अनुसार शुकदेव जी का जन्म व्यास जी के 100 वर्षों के कठोर तप के फलस्वरूप हुआ था।

लेकिन जो सबसे प्रचलित कथा है उसके अनुसार जब इस धराधाम पर भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधिका जी का अवतरण हुआ, तब श्रीराधिकाजी का क्रीडा शुक (तोता) भी इस धराधाम पर आया। उसी समय भगवान शिव पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी कथा सुनते हुए सो गईं। शुक वह कथा सुन रहा था। शिव जी को यह पता ना चल जाए कि पार्वती जी सो गई हैं.

उनकी जगह पर शुक ने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब उन्होंने शुक को मारने के लिये उसका पीछा किया। शुक भागकर व्यास के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी पिंजली के मुख में घुस गया। भगवान शंकर वापस लौट गए। यही शुक व्यासजी के अयोनिज पुत्र के रूप में प्रकट हुए। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था।

माना जाता है कि शुकदेव बारह वर्ष तक अपनी माता पिंजली के गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। क्योंकी धर्म और दर्शन का ज्ञान हो जाने के कारण यह संसार की मोह माया में नहीं फंसना चाहते थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेग।

यह आश्वासन पाने के बाद ही शुकदेव गर्भ से बाहर निकले। जन्म लेते ही श्रीकृष्ण और अपने पिता-माता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिये जंगल की राह ली। परंतु वात्सल्य भाव से रोते हुए श्री व्यासजी भी उनके पीछे भागे। लेकिन शुकदेव को वापस आने के लिए मनाने में असमर्थ रहे।

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