श्रीक्रिष्ण को मोरपंख इतना प्रिय क्यों था?

कृष्णा के मुखुट पर मोरपंख होने के बहुत सारे कारण विद्वान् व्यक्ति देते आये है जिनमे से कुछ इस तरह है |
१) मोर एकमात्र ऐसा प्राणी है जो सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करता है | मोरनी का गर्भ भी मोर के आंसुओ को पीकर ही धारण होता है | इत: इतने पवित्र पक्षी के पंख भगवान खुद अपने सर पर सजाते है |
२) भगवान कृष्णा मित्र और शत्रु के लिए समान भावना रखते है इसके पीछे भी मोरपंख का उद्दारण देखकर हम यह कह सकते है | कृष्णा के भाई थे शेषनाग के अवतार बलराम और नागो के दुश्मन होते है मोर | अत: मोरपंख सर पर लगाके कृष्णा का यह सभी को सन्देश है की वो सबके लिए समभाव रखते है |


३) राधा भी बनी मोरमुकुट का कारण :
कहते है की राधा जी के महलो में बहुत सारे मोर हुआ करते थे | जब कृष्णा की बांसुरी पर राधा नाचती थी तब उनके साथ वो मोर भी नाचा करते थे | तब एक दिन किसी मोर का पंख नृत्य करते करते गिर गया | कृष्णा ने उसे झट से उताकर अपने सिर पर सज्जा लिया | उनके लिए यह राधा के प्रेम की धरोहर ही थी |


४) मोरपंख में सभी रंग है गहरे भी और हलके भी | कृष्णा अपने भक्तो को ऐसे रंगों को देखकर यही सन्देश देते है जीवन ही इस तरह सभी रंगों से भरा हुआ है कभी चमकीले रंग तो कभी हलके रंग , कभी सुखी जीवन तो कभी दुखी जीवन |

वहीं मोर जो नागों का शत्रु है वह भी श्रीकृष्ण के सिर पर विराजित है.
यही विरोधाभास ही श्रीकृष्ण के भगवान होने का प्रमाण भी है कि वे शत्रु और मित्र के प्रति समभाव रखते हैं.

ऐसा भी कहते है कि राधा रानी के महलों में मोर थे और वे उन्हें नचाया करती थी जव वे ताल ठोकती तो मोर भी मस्त होकर राधा रानी जी के इशारों पर नाचने लग जाती.!
एक बार मोर मस्त होकर नाच रही थी कृष्ण भी वहाँ आ गए और नाचने लगे तभी मोर का एक पंख गिरा तो श्यामसुन्दर ने झट उसे उठाया और राधा रानी जी का कृपा प्रसाद समझकर अपने शीश पर धारण कर लिया |


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