सायबॉर्ग क्या है? जानिए इसके बारे में
सायबॉर्ग ऐसे इंसान होते है जिसके शरीर के कुछ अंग टेक्नोलॉजी की सहायता से कंट्रोल किए जाते हैं. आम बोल चाल की भाषा में सायबॉर्ग को मशीनी मानव कहते हैं. वास्तव में सायबॉर्ग ‘साइबरनेटिक ऑर्गेनिज्म’ की शॉर्ट फॉर्म है. इस टर्म को 1960 में पहली बार वैज्ञानिक मैनफ्रेड क्लाइन ने इस्तेमाल किया था. वह कंप्यूटर और दिमाग के बीच सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहे थे… तभी उन्होंने इस शब्द को ईजाद किया था!
हालांकि, सायबॉर्ग शब्द का प्रयोग तो 1960 में हुआ था, लेकिन इसी कॉन्सेप्ट पर बेस्ड एक किस्से का जिक्र 1917 में एक ब्रिटिश मैगज़ीन में भी किया गया था.
इसमें बताया गया था कि उस जमाने में एक अज्ञात राजा ने एक सैनिक का निर्माण कराया था जिसका नाम सोल्जर 241था. इसे युद्ध में घायल हो चुके सैनिकों के शरीर के अंगों और लोहे की सहायता से बनाया गया था. इसे बनाने का मकसद युद्ध में विजय प्राप्त करना था, लेकिन उनका ये पैंतरा उन्हीं पर भारी पड़ गया था क्योंकि सोल्जर 241 युद्ध को रोकना चाहता था.
युद्ध को रोकने के लिए उसने अपने ही कमांडिंग ऑफिसर की हत्या कर दी थी. सोल्जर 241 को ही दुनिया का पहला सायबॉर्ग कहा जाता है, लेकिन अब सायबॉर्ग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मनुष्य की शारीरिक और मानसिक क्षमता को बढ़ाने में किया जा रहा है. हो सकता है वैज्ञानिकों ने इसी घटना से सबक लेते हुए इसका इस्तेमाल मानवता के कल्याण के रूप में करने की शुरूआत की हो.
इसकी सहायता से अब मनुष्य को असाधारण काम करने के अनुकूल बनाने के प्रयास जारी हैं.
सायबॉर्ग के जीते-जागते उदाहरण
आजकल सायबॉर्ग तकनीक विकलांगों और बुजुर्गों के लिए वरदान साबित हो रही है. इस टेक्नोलॉजी की मदद से बहुत से बूढ़े लोग चलने से लेकर अपने रोजमर्रा के कार्य आसानी से कर रहे हैं. ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे आस पास ही मौजूद हैं.
नील हार्मिसन
नील हार्मिसन एक आर्टिस्ट हैं, जो जन्म से ही कलर ब्लाइंडनेस के शिकार हैं. उन्हें सिर्फ ब्लैक और व्हाइट कलर ही दिखाई देते हैं. उनके सिर पर एक ऐसा डिवाइस लगा है, जो रंगों को म्यूजिक की सहायता से सुनता है और ये इलेक्ट्रॉनिक आई यानी कि ‘आईबोर्ग’ उन्हें रंगों की पहचान करने में सहायता करती है.
वह पिछले कई वर्षों से इसकी मदद से ही अपना जीवन सही तरीके से व्यतीत कर पा रहे हैं.
डॉ.केविन वारविक
डॉ. केविन वारविक को ‘कैप्टन सायबॉर्ग’ के नाम से भी जाना जाता है, जो ब्रिटेन में साइबरनेटिक्स के प्रोफेसर हैं. इन्होंने 1998 में ही अपने हाथ में एक माइक्रोचिप इम्प्लांट कर ली थी. इसकी मदद से केविन कंप्यूटर से जुड़े लाइट, हीटर्स आदि उपकरणों को रिमोटली इस्तेमाल कर सकते हैं. इतना ही नहीं इन्होंने तो अपनी पत्नी के हाथ में भी एक ऐसी चिप इम्प्लांट की है, जिससे उनसे हाथ मिलाने वाले को एक अलग तरह की सेंसेशन का एहसास होता है||