हम होली का त्योहार कैसे मनाते है?

यादों के झरोखों से – जहाँ पूरे भारत में एक दिन होली खेली जाती हैं वहीं हमारे गृहनगर में सात दिन तक होली मनाई जाती थी। सातवे दिन होली के मेले पर बहुत हुडदंग होता था। सड़कों पर बड़े बड़े रंगों के ड्रम भरकर रखे जाते थे और उस पर हर आने जाने वालों को जबरदस्ती डुबोया जाता था। यह गुंडई खाली नशे में डूबे मोहल्ले के लड़के लोग करते थे। औरतें तो उस दिन घर के बाहर निकलती ही नही थीं। हमारा खुला हुआ पुराने तरीके का बना घर था, जिसके बीचों बीच में एक खुला हुआ बड़ा सा आँगन था और उसके चारों तरफ कमरे। घर के अंदर, बाहर सड़क से और दूसरे घरों से फेके गए रंग भरे गुब्बारे दीवाली पर हुई चूने की पुताई ख़राब कर देते थे। होली की यह दहशतगर्दी मुझे बिल्कुल नापसंद थी। इसीलिए जब हम छोटे थे तो मुझे दीवाली ज्यादा पसंद थी।

लेकिन अब मुझे होली का त्यौहार बहुत अच्छा लगता है।

भारत में तो हमारे मायके और ससुराल में दिन में ठंडी होली और रात में होली के जलने पर भी पूजा होती थी जो यहाँ तो संभव नही है। लेकिन फिर भी हम होली को अपने तरीके से जरूर मनाते हैं।अमेरिका में हमारे घरों में एक दीवार से दूसरी दीवार तक कालीन लगा होता है तो या तो हमारी होली चौके में मनती है या फिर मौसम के दुरुस्त होने पर घर के बाहर। मौसम जी का मिजाज देखकर ही त्यौहार मनाया जाता है यहाँ।

जब हमारे बच्चे छोटे थे तब हम खासतौर पर होली के दिन उनकी कक्षा में होली और दीवाली का त्यौहार जरूर मनाते थे। हमारे बच्चे होली के पीछे की कहानी कुछ सरल शब्दों में सुनाते थे और बच्चों को और इसका महत्त्व बताते थे। हम घर से बनाकर कुछ मीठा नमकीन और गुझिया आदि लेकर जाते थे और कुछ मेवा आदि भी। सभी बच्चे खाते पीते थे और मजे करते थे। सभी बच्चों को हम कुछ होली से सम्बंधित चीज रखकर एक छोटा गुडी बैग भी देते थे। ऐसा करने से हमारे बच्चों को भी भारतीय त्यौहार मनाने में ज्यादा मजा आता था।

होली मार्च में होती है और इस समय हमारे यहाँ खूब ठंडी हो रही होती है। तो थोड़ा मौसम का मिजाज भी देखना होता है त्यौहार पर। कुछ साल पहले तो होली के दिन इतना बड़ा बर्फ का तूफान आया कि स्कूल कॉलेज सब बंद करने पड़े और फिर उस साल हमने रंगों से नही बरफ की होली मनाई थी।

अब बच्चे बड़े हो गए हैं और सभी लोग बहुत व्यस्त।

होली के दिन क्योंकि हमारे यहाँ छुट्टी नहीं होती है तो सबको काम पर निकलना होता है। तो शाम को सबके घर लौटने के बाद ठाकुर जी को जरा सा गुलाल लगाकर शगुन का गुलाल एक दुसरे को लगाते हैं। भोग के लिए गुझिया/खीर, पूड़ी और सब्जी आदि बनाते और खाते हैं। इससे ज्यादा उस दिन कुछ और नहीं हो पता है।

फिर होली हम मानते हैं सप्ताहांत पर दोस्तों के साथ। होली पर हम रंग तो खेलते ही हैं साथ में इन्तजार होता है कुछ अच्छा त्यौहार के खाने का। होली के अवसर पर ठंडाई, गुझिया और कांजी के बड़े तो जरूर ही बनते हैं हमारे घर पर।

हमारे पतिदेव को खाने खिलाने का बहुत शौक है तो होली की चाट पार्टी का सबको इन्तजार रहता है क्योंकि इस ख़ास दिन हमारे पतिदेव खुद अपने हाथों से सारी तैयारी करके देशी घी में आलू की टिक्की और मटर की टिक्की जरूर बनाते हैं – जिसकी खुशबू दूर दूर तक फिजाओं में रहती है और स्वाद जुबान पर।

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