हिंदू धर्म में फेरों के समय क्यों वर के बायीं और बैठती है वधू?
हिंदू धर्म में विवाह का महत्वपूर्ण स्थान है, इस धर्म में विवाह की हर रस्म का अलग ही महत्व है। चाहे वो मंगलसूत्र और सिंदूर हो या सात फेरे। हिंदू धर्म में बिना फेरों के विवाह को विवाह नहीं माना जाता है, सात फेरों को यहां सात जन्म से जोड़कर देखा जाता है। अक्सर आपने देखा होगा कि विवाह की रस्में शुरु होने से पहले वधू, वर के दाहिनें और बैठती है लेकिन तीसरे या चौथे फेरो के पश्चात वधू, वर के बायीं और आकर बैठ जाती है। आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि फेरो के दौरान क्यों वधू हमेशा वर के बायीं और बैठती हैं? नहीं तो आइए आज हम बताते है इसके पीछे छिपे कारण के बारे में।
हिंदू विवाह में
सबसे पहले बात करते हैं हिंदु विवाह की यहां भी दुल्हन को दूल्हें के बायी ओर बिठाया जाता है और ये परंपरा आजीवन चलती है। हर धार्मिक अनुष्ठान में पत्नी पति के बायीं ओर ही बैठती है। वधु, वर के बायीं ओर बैठती है, इसीलिए पत्नी को ‘वामांगी’ भी कहा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार
इसका एक कारण तो ज्योतिष शास्त्री ये बताते हैं कि पत्नी का स्थान पति के बायीं ओर ही होता है, क्योंकि शरीर और ज्योतिष, दोनों विज्ञान में पुरुष के दाएं और स्त्री के बाएं भाग को शुभ और पवित्र माना जाता है।
हस्तरेखा के अनुसार
हस्तरेखा शास्त्र में भी महिलाओं का बायां और पुरुष का दायां हाथ ही देखा जाता है। शरीर विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा मस्तिष्क की रचनात्मकता और दायां हिस्सा उसके कर्म का प्रतीक है।
धार्मिक कारण
हमारे हिंदू धर्म में विष्णु जी और लक्ष्मी जी का स्थान सर्वोपरि हैं। शास्त्रों में हमेशा लक्ष्मी का स्थान श्री विष्णु के बायीं और होने का उल्लेख मिलता हैं। यही कारण हैं कि हिंदूओं विवाह में फेरो के बाद लड़की का स्थान बायीं ओर होता हैं।