हिटलर ने यहूदियों को क्यों मारा था? जानिए वजह

यहूदियों के प्रति हिटलर की अकल्पनीय घृणा इतिहासकारों के बीच हमेशा से ही विवाद का विषय रहा है। हिटलर के हाथों की गई क्रूरता का वर्णन कर पाना शायद ही संभव हो।

यहूदियों के खिलाफ़ उसके ‘एंटी-सिमिटिक’ विचार और अन्य कई गतिविधियां यही साबित करतीं हैं कि वह पूरी तरह से पागल और असंतुलित इंसान था (यदि उसे इंसान कह पाना संभव हो)। इसी पनपती नफ़रत का परिणाम था, प्रथम विश्व-युद्ध के बाद घटित ‘होलोकॉस्ट’। लाखों लोगों की निर्दयता से हत्या कर दी गई, जिन्हें वह दूषित और दुर्भाग्य का प्रतीक समझता था।

आखिर हिटलर इतना कठोर क्यों था, यह जान पाना कोई आसान काम नहीं है। यह जानने के लिए आपको किताबों के ढेर से गुज़रना पड़ेगा, तब भी कुछ विशेष कारण हाथ नहीं लगते। लेकिन हिटलर के पास कोई न कोई कारण तो ज़रूर रहा होगा।

इतिहासकारों के अनुसार इन 10 कारणों से हिटलर यहूदियों से बेहद नफ़रत करता था।

  1. यहूदी और साम्यवादी (कम्युनिस्ट) प्रभाव

उस समय अधिकतर जर्मन लोगों की विचारधारा बेहद संकुचित थी। हिटलर स्वयं साम्यवादी युद्ध-सिद्धांतों के खिलाफ़ था, जो बहुत कुछ मार्क्स और एंगल से प्रभावित थे। वह हर यहूदी को मार्क्सवादी युद्ध नीति का प्रचारक मानता था।

प्रथम विश्व-युद्ध के बाद ऐसी अराजकता में जर्मन लोगों का आपस में बंट जाना हिटलर को ज़रा भी न भाया था।

  1. आर्थिक महा-मंदी

हिटलर अर्थिक मंदी के लिए यहूदियों को कसूरवार समझता था, क्योंकि उनका नियंत्रण कई ज़रूरी व्यवसाय और विशेष क्षेत्रों पर था। उसने अपने जर्मन देशवासियों को भड़काना शुरू किया।

अमीर होने के कारण अधिकतर यहूदियों पर मंदी का कोई असर नहीं पड़ा था । यह अन्याय हिटलर को बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने प्रतिशोध का मन बना लिया।

(सन् 1920: जर्मनी में एक गरीब परिवार)

  1. प्रथम विश्व-युद्ध में हार

‘9 नवंबर- कैसे विश्व-युद्ध बना होलोकॉस्ट का कारण’- एक नव-प्रकाशित पुस्तक के अनुसार हिटलर की यहूदियों के प्रति तीव्र घृणा की मुख्य वजह प्रथम विश्व-युद्ध में जर्मनी की हार थी।

लेखक जोशिम रीकर का दावा है कि हिटलर यहूदियों को जर्मनी की शर्मनाक हार के लिए दोषी मानता था। यही नहीं, राजतंत्र के खंडन और जर्मनी की बर्बादी का सारा दोष भी यहूदियों पर ही डाल दिया गया था।

  1. एंटी-सिमिटिक साहित्य का दुष्प्रभाव

हिटलर बहुत पढ़ा लिखा नहीं था, लेकिन उसके विचार और क्रियाकलाप बहुत कुछ रूढ़िवादी एंटी सिमिटिक साहित्य से मिलते थे जो उस समय यह पढ़ाया करता था कि यहूदी सभी तरह कि बुराइयों की लिए ज़िम्मेदार थे।

ऐसे ही कुछ लोगों और साहित्य से प्रभावित होकर वह यह मान बैठा था कि यहूदी मक्कार व अविश्वसनीय थे और जर्मन नागरिक कहलाने के बिल्कुल योग्य नहीं थे।

  1. हिटलर का बचपन

इतिहासकारों और मानकों के बीच हिटलर और उसके परिवार के सम्बन्ध में टकराव होता ही रहता है। इतिहासकारों की माने तो हिटलर खुद एक यहूदी था, लेकिन उसकी मां ने कभी यह बात उसके सामने ज़ाहिर नहीं की थी। एक का तो दावा है की इस नफरत का जन्म हिटलर की दादी के देहांत की बाद हुआ, क्योंकि जिस डॉक्टर एडुअर्ड ब्लोच ने उनका असफल इलाज किया था, वह एक यहूदी था।

एक स्त्रोत तो हिटलर के नाजायज़ जन्म की तरफ भी इशारा करता है, क्योंकि उसकी मां एक अमीर यहूदी परिवार में नौकरानी थी। यह भी कहा जाता है कि यहूदी परिवार की लिए काम करते हुए हिटलर को दुर्व्यहवहार का सामना करना पड़ा था।

(हिटलर जब एक बच्चा था)

  1. एक सिपाही के रूप में मानसिक हनन

स्त्रोतों के मुताबिक जर्मनी का चांसलर बनने से पूर्व हिटलर ने म्यूनिच जाकर जर्मन आर्मी में एक सिपाही के रूप में काम किया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उसके सिर पर गम्भीर चोटें आईं थीं। उसके बाद उसने आर्मी छोड़ दी और उसकी मानसिक हालत खराब होती चली गई।

कई लोगों का तो यह भी मानना था कि उसके बाद से हिटलर में इंसानियत का ही हनन हो गया था।

  1. मास्टर रेस सिद्धांत

हिटलर ने मास्टर रेस सिद्धांत का आविष्कार किया था, जो पवित्रता के मायने बताता था। उसके अनुसार केवल गोरे और नॉर्डिक सूरत वाले लोगों को ही जर्मनी में रहने का अधिकार था। ऐसे लोगों की व्याख्या हिटलर ने ‘आर्यनों’ के रूप में की थी, जिन्हें वह शुद्ध जर्मन कहता था।

यहूदी हिटलर के लिए कीड़े-मकोड़ों से बढ़कर नहीं थे। जो भी इस नाज़ी नीति के अनुरूप नहीं चलता उसे प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी। हिटलर पूरी तरह से ‘अपत्रिव’ लोगों का जर्मनी से सफ़ाया करना चाहता था।

  1. यहूदी षड्यंत्र

हिटलर की अजीब सी धारणा थी कि यहूदी दुनिया पर अपना हक़ जमाना चाहते थे। इस बात का इशारा ‘द प्रोटोकॉल्स ऑफ़ द एल्डर्स ऑफ़ ज़िओन’ नामक ‘सीक्रेट जूइश हैंडबुक’ में देखने को मिलता है। यह किताब पाठकों को यहूदी षड्यंत्र को आगे बढ़ाना सिखाती थी।

कहा जाता है कि उस किताब का मूल ही नकली था और उसका जन्म यहूदी-विरोधी प्रचार करने के लिए ही किया गया था। लेकिन हिटलर अपने समर्थकों को यह विश्वास दिलाने में सफल हो गया था कि जर्मनी की समृद्धी के लिए यहूदियों को मारना ज़रूरी था। असल में तो वह अपने मुताबिक समाज की रचना करना चाह रहा था।

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