ताजमहल से भी 1000 साल पुराना है प्यार का ये मंदिर

छठी शताब्दी में श्रीपुर एक आधुनिक राजधानी थी। वहीं श्रीपुर आज सिरपुर के नाम से जाना जाता है। यहां के राजा हुआ करते थे हर्षगुप्त, उनका विवाह मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी वासटादेवी से हुआ था। दोनों एक दुसरे से इतना प्यार करते थे की हर्षगुप्त की मौत के बाद रानी ने उनकी याद में एक मंदिर बनवाया।

कहा जाता है कि 14वीं-15वीं सदी में महानदी की विकराल बाढ़ में यह नगरी पूरी तरह तबाह हो गई। मगर, इस त्रासदी के बाद भी ये मंदिर प्यार की अमर निशानी के रूप में खड़ा रहा। इसे लक्ष्मण मंदिर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर ताजमहल से 1100 साल पहले बनवाया गया था। ये एक मंदिर ही नहीं बल्कि बेपनाह प्यार का जीता-जागता उदाहरण है। चीन से भारत यात्रा पर आए व्हेनसांग ने अपनी यात्रा के बारे मे लिखते हुए सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर का उल्लेख किया था। व्हेनसांग छठी शताब्दी में भारत आये थे।

जिसके आधार पर तीन साल पहले शुरू हुई खुदाई में मिले अवशेषों और शिलालेखों से पता चला कि ये मंदिर 635-640 ईस्वी में बनाया गया था। इन्हीं शिलालेखों में ही वासटादेवी और हर्षवर्धन की प्रेम कहानी के सबूत मिलते हैं। भले ही इसे लक्ष्मण मंदिर कहा जाता है, लेकिन ये वासटादेवी और हर्षवर्धन की अमर प्रेम गाथा की ही निशानी है।

ताजमहल और लक्ष्मण मंदिर में फर्क बस इतना है, कि ताजमहल का निर्माण बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में करवाया था। पर लक्ष्मण मंदिर का निर्माण रानी वासटादेवी ने अपने पति महाराज हर्षगुप्त की याद में करवाया। चूंकि इसका निर्माण एक शासक ने नहीं करवाया इसलिए ये ताजमहल के जितना भव्य नहीं है। मगर इसकी हर एक ईंट आज भी मोहब्बत की दास्तां बयां करती है।

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