15 अगस्त 2020 : कैसे बना भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारी इसी आजादी की यात्रा का प्रतीक है. गणतंत्र ने इस सहर्ष स्वीकार किया और तिरंगा जन के मन के भीतर समाहित हो गया. यही ध्वज देश की आन-बान और शान का प्रतीक है.

भारत के ध्वज को तिरंगे के नाम से जाना जाता है और हम सभी तिरंगे को बड़े ही गर्व से फहराते हैं.

राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप कब और किसने तैयार किया था

हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास भी बहुत रोचक है. 20वीं सदी में जब देश ब्रिटिश सरकार की ग़ुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब स्वतंत्रता सेनानियों को एक ध्वज की ज़रूरत महसूस हुई, क्योंकि ध्वज स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का प्रतीक रहा है.

सन् 1904 में विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया, जिसे बाद में सिस्टर निवेदिता ध्वज के नाम से जाना गया.

पहली बार तीन रंग वाला ध्वज सन् 1906 में बंगाल के बंटवारे के विरोध में निकाले गए जलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लाए. इस ध्वज में सबसे उपर केसरिया रंग, बीच में पीला और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था.

केसरिया रंग पर 8 अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे. नीचे हरे रंग पर एक सूर्य और चंद्रमा बना था. बीच में पीले रंग पर हिन्दी में वंदे मातरम् लिखा था.

सन् 1908 में भीकाजी कामा ने जर्मनी में तिरंगा झंडा लहराया और इस तिरंगे में सबसे ऊपर हरा रंग था, बीच में केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस झंडे में धार्मिक एकता को दर्शाते हुए; हरा रंग इस्लाम के लिए और केसरिया हिन्दू और सफ़ेद ईसाई व बौद्ध दोनों धर्मों का प्रतीक था.

इस ध्वज में भी देवनागरी में वंदे मातरम् लिखा था और सबसे ऊपर 8 कमल बने थे. इस ध्वज को भीकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर तैयार किया था.

प्रथम विश्व युद्ध के समय इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया, क्योंकि इसे बर्लिन कमेटी में भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अपनाया गया था.

भारतीय राष्ट्री्य ध्व ज की अभिकल्पिना पिंगली वैंकैयानन्दे ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्वतरूप में 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था.

15 अगस्त् 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीीय ध्वाज के रूप में अपनाया गया और इसके बाद भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया. इससे पहले भी भारत के कई ध्वज रह चुके हैं.

भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक कलकत्ता में फहराया गया था. इस ध्वज को लाल-पीले और हरे रंग की क्षितिज पट्टियों से बनाया गया था.

भारत का दूसरे ध्वज को साल 1907 में पेरिस में मैडम कामा द्वारा फहराया गया था और इसमें सबसे ऊपर बनी पट्टी पर सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते थे जबकि एक कमल था.

भारत का तीसरा ध्वज साल 1917 में डॉ.एनी बीसेंट और लोकमान्यस तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान फहराया. इस ध्वधज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां थी जो की एक के बाद एक सप्तकऋषि के स्वरूप में इस पर बने सात सितारे थे.

इसके बाद हमारे देश का चौथा ध्वज जो की अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सत्र के दौरान 1921 में बेजवाड़ा में फहराया गया था ये लाल और हरे से बना था जो हिंदू और मुस्लिम दोनों समदायों को दर्शाता था. जिसको देखने के बाद गांधी जी ने यह सुझाव दिया था कि इसमें एक सफेद पट्टी और एक चलता हुआ चरखा भी होना चाहिए.

इसके बाद पांचवा ध्वज साल 1931 में फहराया गया था, जिसके बाद तिरंगे को 22 जुलाई 1947 को भारत ने अपनाया और भारत के राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वैंकेया ने डिजाइन किया था. वेंकैया ने इसके लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली थी.

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में अशोक चक्र का सुझाव

गांधी जी ने इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी, जो सारे भारत को एक सूत्र में बांधने का संकेत बने. पिंगली ने 5 सालों तक 30 देशों के झंड़ों पर रिसर्च किया.

इस रिसर्च के नतीजे के तौर पर भारत को राष्ट्रध्वज के तौर पर तिरंगा मिला. इसके बीचों-बीच अशोक चक्र भी बना है, जिसमें 24 तिल्लियां होती हैं और इस तिरंगे को इंडियन नेशनल कांग्रेस ने भारत के स्वतंत्र होने से कुछ समय पहले ही अपना लिया था और इस तरह से हमें हमारे देश का ध्वज तिरंगा मिला जो की आज हमारे देश भारत की शान है.

राष्ट्रीय ध्वज के तीनो रंग की पट्टियों का अर्थ और प्रतीक

भारतीय राष्ट्री्य ध्वगज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, जिसमे सबसे ऊपर केसरिया जो की त्याग और बलिदान का प्रतीक है बीच में सफेद जो की समृद्धता का प्रतीक है और ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी जो की न्याय का प्रतीक है और ये तीनों समानुपात में हैं.

इस ध्वज की चौड़ाई का अनुपात 2 और 3 का है. सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है. यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है. इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें कुल 24 तीलियां है.

राष्ट्रीय ध्वज में चक्र का क्या महत्व है

चक्र का मतलब होता है गतिशीलता और इसको तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है. इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्युे है.

सम्राट अशोक के बहुत लेखों पर प्रायः एक चक्र बना हुआ है जिसे अशोक चक्र कहते हैं अशोक चक्र में कुल चौबीस तीलियां हैं. जब तिरंगा फट जाए या रंग उड़ जाए तो इसे नहीं फहराया जा सकता. ऐसा करना राष्ट्रध्वज का अपमान समझा जाता है.

भारतीय संविधान के अनुसार किसी राष्ट्रविभूति के निधन व देश में राष्ट्रीय शोक घोषित होने के बाद तिरंगे को झुका दिया जाता है.

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