ऐसा मंदिर जिसकी छाया नहीं पड़ती जमीन पर
दक्षिण भारत ना सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता समुद्री आबोहवा के लिए जाना जाता है। बल्कि भारत का यह भूभाग सांस्कृतिक आस्था व धार्मिक गतिविधियों के लिए भी काफी प्रसिद्धि है। उत्तर भारत के साथ-साथ हिंदू साम्राज्य दक्षिण भारत में काफी फला फूला। जिस कारण यह संख्या भव्य मंदिर देखने को मिलते हैं। इतिहास की गहराई मैं जाए तो पता चलता है कि दक्षिण भारत के कई बड़े हिंदू राजाओं ने अपने शासनकाल के दौरान कई आकर्षक मंदिरों के निर्माण करवाए थे। आज हम बात करेंगे भारत में स्थित बृहद्धेश्वर मंदिर की जो पूरी तरह से ग्रेनाइट से निर्मित है। विश्व में यह पहला मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया हुआ है। यह मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित है। इसे बनाने में 130000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल हुआ था। मंदिर की ऊंचाई 216 फुट है यानी 66 मीटर है और यह संभवत विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। मंदिर में पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट या किसी किस्म के लेप का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके बजाय इसे पजल सिस्टम से जोड़ा गया है।
तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर बृहद्धेश्वर को 11 वीं सदी में चोल शासक प्रथम राज राज चोर ने बनवाया था। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। राजा प्रथम भगवान शिव के परम भक्त थे इसलिए उन्होंने शिव मंदिर के निर्माण का कार्य करवाया था। जिनमें से एक बृहदेश्वर मंदिर भी है। यह मंदिर चोल शासकों की महान कला का केंद्र भी रहा है। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण है।यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता है। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था। परंतु तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर को बृहदेश्वर नाम दे दिया था। वर्ष 2010 में इसके निर्माण के 1000 वर्ष पूरे हुए थे। मंदिर के 13 मंजिला भवन सभी को अचंभित करते हैं।
रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल 1954 को ₹1000 का नोट जारी किया था। जिस पर वृद्धेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर है। बृहदेश्वर मंदिर पेरूवउदैयार, कोविल, तंजाई पेरिया, कोविल राजराजेश्वरी तथा राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। आइए अब जाने मंदिर की कुछ ऐसी खासियत जो आज भी हमें हैरान कर देती हैं। इसने मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह है कि दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई जमीन पर दिखाई देती है। मगर इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती जो सभी को आश्चर्यचकित करती है। मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश विद्यमान है। जो केवल एक पत्थर को तराश कर बनाया गया है और इसका वजन 80 टन का है। बताया जाता है कि इस कलश को वहां पहुंचाने के लिए 6 किलोमीट लंबा रैंप यानी की ढलान बनाया गया था। इस पर लुढ़का कर इस पत्र को जमीन से शिखर तक पहुंचाया गया था। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम के भीतर एक चौकोर मंदव है। जहां पर एक चबूतरे पर नंदी जी विराजमान है। द्वार पर ग्रेनाइट के एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई नंदी की मूर्ति भी सबको आश्चर्यचकित करती है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की यह दूसरी दूसरी विशाल प्रतिमा है। यह मूर्ति 16 फीट लंबी और 13 फीट चौड़ी है।