सनातन धर्म के अनुसार पृथ्वी किस पर टिकी हुई है ? जानिए

भगवत गीता के द्वितीय या तृतीय अध्याय में श्री कृष्ण कहते हैं की हे अर्जुन जो व्यक्ति वेदों की अलंकृत भाषा में उलझा रहता है वो वेदों के मूल ज्ञान को नहीं समझ पता और इसी कारन अपने सकाम कर्मों को सिद्ध करने या सफल करने के लिए अनेकानेक देवताओं को खुश करने में लगा रहता हैं।

ऐसा व्यक्ति सकाम कर्म से कभी मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता और जन्म मरण के चक्र में लगा रहता है। इसलिए मनुष्य को वेदों या ग्रंथों की अलंकारित भाषा में न उलझ कर उसके मूल को समझने कि प्रयास करना चाहिए।

अब यहाँ शेषनाग भी रूपक अलंकार हैं। जो हिंदी के जानकार होंगे वो जानते होंगे की रूपक अलंकार क्या होता है। किसी किसी ग्रन्थ में शेषनाग के फनो को धर्म कि प्रतीक माना गया है अर्थात ये दुनिया धर्म यानि कर्तव्यों पर टिकी है।

और कहीं कहीं अनंत फन बताये गए हैं और वहां शेष जी को अनंत शेष कहा गया है। अर्थात पृथ्वी अनंत में यानि ब्रह्माण्ड में टिकी है।

यदि फिर भी आपके मन में कोई संशय है तो मैं कहूंगा की शास्त्र कहते हैं की किसी भी शास्त्रीय मतभेद में वेदों को प्रथम प्रमाण मानना चाहिए। और यजुर्वेद में स्पष्ट लिखा है की “ये प्रत्यक्ष (यानि भौतिक रूप से दिखने वाली) गोल रुपी पृथ्वी पालन करने वाले सूर्यलोक के आगे आगे व अपने योनिरूप जलों के साथ (अर्थात समुद्र के जलों के साथ) अच्छी प्रकार चलती हुई अंतरिक्ष में चारों तरफ घूमती है।”

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