गर्भावस्था में शराब का सेवन करना बच्चे के लिए हो सकता है खतरनाक

गर्भावस्था की किसी भी अवधि में शराब पीना बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय मेडिकल पत्रिका ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी’ ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। इसके मुताबिक, इंग्लैंड की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था के दौरान शराब के सेवन के प्रभावों का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने पाया कि प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी समय शराब पीना बच्चे के मानसिक विकास को प्रभावित करता है।

बच्चे पर क्या असर पड़ सकता है?
गर्भवती महिला के पेट में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर शराब के प्रभावों को जानने के लिए शोधकर्ताओं ने ऐसे लोगों (महिलाओं) के समूह (केवल महिलाओं के परिपेक्ष में) को चुना, जिनमें किसी ने गर्भावस्था के दौरान शराब पी थी और किसी ने नहीं। इन लोगों के विश्लेषण से पता चला कि प्रेग्नेंसी में कभी भी ऐल्कहॉल लेने से होने वाले बच्चे का वजन कम हो सकता है। साथ ही, उसकी मानसिक कार्यक्षमता भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती है।

यूनिवर्सिटी में इस शोध का नेतृत्व करने वाली डॉक्टर लुइसा जुकोला ने विश्लेषण के आधार पर कहा कि गर्भावस्था के समय शराब के सेवन से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है, जिसका सीधा असर उसकी बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है। डॉक्टर जुकोला ने कहा, ‘इसके कारण बच्चे की शिक्षा भी खराब होगी।’

अजन्मे बच्चे को ऐसे प्रभावित करती है शराब
डॉक्टर फातमा परवीन का कहना है कि जब कोई गर्भवती महिला शराब का सेवन करती है तो यह गर्भनाल के रास्ते भ्रूण में चली जाती है। इससे बच्चे को क्या नुकसान होता है, इस बारे में डॉक्टर फातमा ने बताया-

भ्रूण के लीवर पर असर पड़ता है। भ्रूण के लीवर में पर्याप्त एंजाइम नहीं होता है। इसकी वजह से गर्भ में पल रहे बच्चे को समस्या आती है, जिसे फीटल ऐल्कहॉल सिंड्रोम कहते हैं।
ऐल्कहॉल में मौजूद तत्व भ्रूण के दिमाग, आंख और उसके शरीर ( हार्ट और किडनी) के कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।
भ्रूण के हाथ और पैर की संरचना या आकार में भी फर्क आ सकता है। गर्भपात की आशंका भी बढ़ जाती है।
अगर अल्कोहल का सेवन किया है तो क्या करें?
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर फातमा बताती हैं, ‘अगर किसी महिला ने गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन किया है तो यह आवश्यक है कि पहले वह इस आदत को छोड़ दें। इसके बाद निगरानी करना जरूरी होगा। इसके लिए समय-समय पर अल्ट्रासाउंड कराएं। अल्ट्रासाउंट की मदद से बच्चे की मानसिक और शारीरिक स्थिति का ठीक से पता चल सकेगा।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *