इस बात का पता कैसे लगाएं कि आपका शिशु स्वस्थ है?

अपने शिशु के विकास और स्वास्थ्य पर नजर रखना बेहद जरूरी है। चूंकि आपका शिशु आपसे सीधे तौर पर बात कर अपनी जरूरतें नहीं बता सकता इसलिए अगर शिशु को सेहत से जुड़ी कोई समस्या होगी तो उसके लक्षण शिशु के शरीर पर दिखेंगे। आपको सतर्क रहना होगा ताकि आपका शिशु हमेशा स्वस्थ रहे और उसका विकास सही तरीके से हो। अपने बच्चे की सेहत को लेकर इन बातों का ध्यान जरूर रखें:

टीकाकरण: ध्यान रहे कि आपके शिशु को उसके सभी जरूरी टीके समय पर लगें। ऐसा करने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि आपके शिशु को कोई गंभीर बीमारी नहीं होगी। सबसे पहले टीके की शुरुआत हेपेटाइटिस बी वैक्सीन से होती है जो जन्म के 24 घंटे के अंदर दिया जाता है। इसके बाद रोटावायरस, काली खांसी, डिप्थीरिया, टेटनस, पोलियो और न्यूमोकॉकल टीका के 3 राउंड (जिसे आमतौर पर दूसरे महीने में, चौथे महीने में और छठे महीने में) दिए जाते हैं। फ्लू, चिकन पॉक्स, मीजल्स, मम्प्स, रूबेला, हेपेटाइटिस ए आदि के टीके जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है उसे दिए जाते हैं।

डॉक्टर का चेकअप: अपने पीडियाट्रिशन के पास जाकर शिशु का रेग्युलर बेसिस पर चेकअप करवाना न भूलें। भले ही आप फोन पर डॉक्टर के साथ संपर्क में रहें, उसके बावजूद डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि डॉक्टर द्वारा शिशु का शारीरिक चेकअप किया जाना बेहद जरूरी है ताकि पता चल सके कि शिशु के अंदर सबकुछ ठीक है या नहीं। जन्म से लेकर 6 महीने तक इस तरह के चेकअप के लिए बार-बार जाने की जरूरत पड़ती है।

शिशु के माइलस्टोन की डायरी: बहुत से अस्पताल शिशु के जन्म पर न्यू पैरंट्स को एक माइलस्टोन डायरी देते हैं। लेकिन अगर आपको ऐसी कोई डायरी नहीं मिली तब भी यह जरूरी है कि आप अपने शिशु के शुरुआती 12 या 18 महीनों के विकास से जुड़ी बातें इस डायरी में नोट करें। ऐसा करने से आपको यह पता चलेगा कि आपके शिशु का विकास सही तरीके से हो रहा है या नहीं खासकर शिशु का वजन, शिशु की हाइट, संज्ञानात्मक विकास और मोटर स्किल्स से जुड़े माइलस्टोन्स।

चिकित्सीय जरूरतें: बहुत सी ऐसी दवाइयां और मेडिकल टूल्स हैं जिन्हें शिशु के लिए सुरक्षित माना जाता है। इन दवाइयों को खरीदकर रखने से पहले अपने डॉक्टर से एक बार बात जरूर कर लें। इन दवाइयों और उपकरणों को हमेशा अपने पास रखें जैसे:

डिजिटल रेक्टल थर्मोमीटर
डायपर रैश क्रीम
बेबी सोप
बेबी लोशन
पेट्रोलियम जेली
दवाई पिलाने वाले ड्रॉपर
रुई का बंडल
इन्फेंट एसटामिनोफेन बुखार के लिए (या कोई और दवा जो आपके पीडियाट्रिशन) ने बतायी हो
एंटीबायोटिक क्रीम
ट्वीजर या शिशु के नाखून काटने के लिए नेल क्लिपर
और आखिर में इन बातों का रखें ध्यान –
नवजात शिशु या छोटे बच्चों का ध्यान रखना भले ही आपको अभी मुश्किल और अपरिहार्य लग रहा हो लेकिन ये बात याद रखनी जरूरी है कि ज्यादातर न्यू पैरंट्स इन सारी चीजों से गुजरते हैं जिनसे आप अभी गुजर रहे हैं। इसलिए सभी चीजों के बारे में पहले से जानकारी रखें, अपने डॉक्टर से संपर्क बनाए रखें और वैसे पैरंट्स जो अनुभवी हैं उनसे इस बारे में बात करते रहें। याद रखें कि जितने भी सवाल आपके दिमाग में हों सभी का जवाब जान लें। जब बात शिशु की सुरक्षा और खैरियत की आती है तो कोई भी सवाल गलत या बेकार का सवाल नहीं होता।

ऐसे में अपने शिशु का पालन-पोषण करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:

माता और पिता दोनों के लिए जरूरी है कि वे शिशु के साथ शुरुआत में ही अपना जुड़ाव मजबूत कर लें। ऐसा न सोचें कि मां और बच्चे के बीच जुड़ाव होना जरूरी है, पिता के साथ न भो हो तो क्या फर्क पड़ता है।

अपने साथ-साथ शिशु के लिए भी हर दिन की रूटीन बना लें। जितनी जल्दी हो सके शिशु के खाने-पीने, शारीरिक गतिविधि करने और सोने के समय को नियमित कर दें। शिशु के जन्म के बाद दूसरे ही हफ्ते में आप चाहें तो शिशु के लिए बेडटाइम रूटीन की शुरुआत कर सकती हैं।

शिशु के जन्म के बाद शुरुआती दिनों में ही परिवार के सदस्यों और दोस्तों की मदद लेना अच्छा रहता है क्योंकि इससे माता-पिता का बोझ कुछ कम होता है और इससे शिशु भी समुदाय और समाज के साथ जुड़ाव महसूस करने लगता है। अगर शिशु से बड़ा कोई भाई-बहन हो तो उसे भी शिशु के कामों में इंगेज करें ताकि वे शिशु से ईर्ष्या करने की बजाए खुद को परिवार में सम्मिलित समझें।

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