जानिए देवों के देव महादेव से जुड़ी कुछ रहस्यमई बातें

दोस्तों आपको बता दे कि भगवान शिव के शिष्य को सप्त ऋषि माना गया है, कहा यह जाता है कि इन ऋषियो द्वारा ही पृथ्वी पर संपूर्ण ज्ञान का विस्तार किया गया, यह भी कहा जाता है, कि भगवान शिव ने गुरु और शिष्य की परंपरा को शुरू किया था। उनके साथ और शिष्य का नाम- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, शहस्त्रक्ष, महेंद्र, प्राचेतस मनु, भारद्वाज,और गैरसिरस मुनि भी थे।

दोस्तों शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

दोस्तों भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। नवनाथ की परंपरा ने आगे बढ़ाया।

भगवान शिव के पैरों के निशान अभी भी श्रीलंका के रतनदीप पहाड़ की चोटी पर, श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। इनकी लंबाई 5 फुट 7 इंच और चौड़ाई 2 फुट 6 इंच है।

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