जानिए लो फाइबर डायट की जरूरत किसे होती है?

पेट से संबंधित बीमारियों में लो फाइबर डायट को डॉक्टर द्वारा सजेस्ट किया जाता है। लो रेसिड्यू डायट में ज्यादातर खाए जाने वाले फूड्स की मात्रा सीमित रहती है, जिससे पेट में समस्या कम होती है। इस डायट को लेने के बाद भोजन अवशोषित हो जाता है। जिसके कारण अवशेष काफी कम बचता है। जब पेट में खाने का अवशेष कम रहेगा तो इसके बाद आंतों में होने वाली हलचल कम होती है। जिससे स्टूल यानी कि मल त्याग की मात्रा कम होती है।

लो फाइबर डायट को निम्न बीमारियों से ग्रसित लोगों को अपनाने की सलाह दी जाती है :

इंफ्लमेटरी बॉवेल डिजीज, क्रोहन डिजीज और अल्सरेटिव कोलाइटिस।
बोवेल ट्यूमर।
कीमोथेरिपी में प्रयुक्त किए जाने वाले रेडिएशन के कारण पेट और आंतों में जलन की समस्या होना।
कोलोनोस्कोपी या पेट की किसी सर्जरी के पहले या बाद में।

आंतों का सकरा या पतला हो जाना।
बॉवेल डिजीज सिंड्रोम या डीवर्टीकुलोसिस।
उपरोक्त बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति को कम फाइबर का सेवन करने के लिए कहा जाता है। एक दिन में लगभग 10 से 15 ग्राम ही फाइबर का सेवन करना होता है।

इसके साथ ही इस डायट में मिनरल, विटामिन, कैल्शियम, पोटैशियम, फोलिक एसिड और विटामिन सी आदि की मात्रा को भी थोड़ा कम कर दिया जाता है। बहुत सारे फूड के पैकेट पर न्यूट्रिएंट्स की मात्रा लिखी होती है।

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