जानिए महिलाएं की आयु पुरुषों से अधिक क्यों होती हैं

जन्म से महिलाएं पुरुषों से ज्यादा जीने की क्षमता लेकर आती हैं। कुछ आकड़ों के अनुसार, अमेरिका में महिलाएं पुरुषों से लगभग 6.5 वर्ष, ब्रिटेन में 5.3 साल, रूस में 12 साल और भारत में लगभग 6 महीने अधिक जिन्दा रहती हैं।

इस सामाजिक विविधता से पता चलता है कि सामाजिक कारकों का पुरुषों और महिलाओं की दीर्घायु पर काफी प्रभाव पड़ता है। असल में महिलाओं के पास एक बायोलॉजिकल लाभ होता है लेकिन ऐतिहासिक रूप से उनके रहने का तरीका और सामाजिक रीति-रिवाजों ने इस लाभ को अस्वीकार करने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए, मासिक धर्म के कारण कभी कभी महिलाओं में रक्त की कमी हो जाती है जिस वजह से आयरन की कमी होने के कारण उन्हें एनीमिया हो जाता है जो पहले के समय में महिला मृत्यु दर में वृद्धि करता था। पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक अंतर और मां बनने की चुनौतियों ने महिलाओं के इस जैविक लाभ से भी समझौता किया है।

महिला हार्मोन, विशेष रूप से एस्ट्रोजन और महिलाओं के शरीर का गर्भावस्था और स्तनपान के लिए लचीलापन भी उनकी दीर्घायु को बढ़ावा देता है। एस्ट्रोजन हार्मोन, रक्त में मौजूद लिपिड पर भी फायदेमंद प्रभाव डालता है और समय से पहले होने वाली दिल की बीमारी से महिलाओं की रक्षा करता है।

पशु चिकित्सा और मानव चिकित्सा में पुरुषों और महिलाओं के व्यवहार में काफी अंतर पाया गया है, और मानव मस्तिष्क में तो यौन अंतर काफी कम उम्र में ही दिखाई देने लगते हैं। गर्भ के पहले 26 हफ्ते में पल रहे के भ्रूण के अल्ट्रासाउंड में से पता चलता है कि मस्तिष्क के दाएं और बाएं गोलार्द्धों (Hemispheres) के बीच संपर्क स्थापित करने वाला कॉर्पस कॉलोसम लड़कों की तुलना में लड़कियों में बड़ा पाया जाता है। वयस्कों में, महिलाओं का दिमाग मस्तिष्क के दोनों तरफ से भाषा की सक्रियता दिखता है, जबकि पुरुषों का दिमाग मुख्य रूप से बाईं ओर के मस्तिष्क का उपयोग करता है। लड़कों में लड़कियों की तुलना में अधिक सीखने समझने के विकार पाए जाते हैं जैसे डिस्लेक्सिया और हकलाना आदि। पुरुषों का मस्तिष्क ज्यामिति (Geometry) और गणित के क्षेत्रों में अधिक तेज़ चलता है। आक्रामकता और क्रोध को नियंत्रित करने के लिए मस्तिष्क में पायी जाने वाली क्षमता या आवेग महिलाओं में बड़ी होती है।

पुरुषों का व्यवहार थोड़ा खतरनाक होता है, और कार्यस्थल अर्थात ऑफिस वगैरह में उनके अधिक खराब व्यवहार की वजह से वे खतरे में भी आ जाते हैं। पुरुष वाहन दुर्घटनाओं का अधिक शिकार होते हैं और शराब और धूम्रपान की लत भी उनमें महिलाओं से ज्यादा होती है। इसके अलावा, पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक आक्रामक तरीके से गाडी चलाते हैं। पुरुषों में इन वजहों से हृदय रोग और अन्य दुर्घटनाएं होने की संभावना बढ़ जाती है।

15 से 24 साल की आयु में पुरुषों में मृत्यु दर अचानक से बढ़ जाती है क्योंकि उनमें पुरुष हार्मोन, टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन चरम सीमा पर होता है।

इसके अलावा, महिकलाओं में पाया जाने वाला एस्ट्रोजन हार्मोन महिलाओं में अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा में वृद्धि करता है और ख़राब कोलेस्ट्रॉल को कम करता है जिससे उनमें ह्रदय रोग और स्ट्रोक होने की सम्भावना कम होती है, जबकि पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन खराब कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि करता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को घटाता है। जिस कारण उनमें ह्रदय रोगों के होने की सम्भावना अधिक होती है।

लिंग के आधार पर भी दोनों के शरीर से संबंधित अन्य तरीके अन्य संभावित कारक हैं जो पुरुष और महिला में दीर्घायु अंतर को समझाते हैं। महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक होती हैं और पुरुषों के मुकाबले जीने के लिए स्वस्थ जीवनशैली का इस्तेमाल करती हैं। पुरुष मज़बूती और ताकत के आधार पर अपने शरीर को तैयार करते हैं और बचपन से ज़िंदगी के जोखिमों का सामना करते रहते हैं।

महिलाओं और पुरुषों के बीच लंबी आयु के इस मतभेद के निष्कर्ष तक पहुंचने का एक और तरीका है, और वो है मृत्यु के कारणों पर विचार करना। लिंग के हिसाब से बने मृत्यु दर के आंकड़ों में हिंसा के कारण पुरुषों की मृत्यु दर अधिक दिखाई जाती है, जो 30 वर्ष की उम्र के आसपास 4:1 है। अर्थात हिंसा के कारण 4 पुरुषों पर एक महिला की मृत्यु होती है। शीर्ष 10 कारणों में मृत्यु दर, डायबिटीज मेलिटस को छोड़कर सभी शर्तों के लिए पुरुषों में मृत्यु दर महिलाओं के अनुपात में अधिक पायी गयी है। डायबिटीज मेलिटस में दोनों की मृत्यु का जोखिम समान होता है। असल में यह लिंग अंतर, जैविक या जीवन शैली विकल्पों से संबंधित है जैसे सिगरेट पीना, शराब पीना आदि। अंततः महिलाओं की जैविक क्रिया इस जीवन मृत्यु के अनुपात में अहम् भूमिका निभाती है।

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